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हिकायत

 

हिकायत नम्बर (115) अफ़्शाऐ राज़

हज़रत याकुब अलेहिस्सलाम ने अपने बेटों से फ़रमाया के अल्लाह की
रहमत से मायूस ना हो और यूसुफ़ की तलाश करो चनाँचे वो फिर मिस्र
पहुँचे और यूसुफ अलेहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर होकर कहने लगे के
ऐ शाहे मिस्र! हम बड़ी मुसीबत में हैं हमारी हक़ीर सी पूंजी कबूल कर के
हमें और गल्लह दे और हम पर खैरात भी कर, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम
अपने भाईयों का ये अज्जो इन्किसार और उनकी परेशानी देखकर फरमाने
लगे क्या तुम्हें कुछ ख़बर है के तुम ने यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या
सलूक किया? यानी यूसुफ़ को मारना, कुएँ में फैंकना, बेचना और उनके
बाद उनके भाई को तंग रखना, परेशान करना क्या क्या कुछ याद है? और
ये फरमाते हुए यूसुफ़ अलेहिस्सलाम को हंसी भी आ गई और भाईयों ने
यूसुफ़ अलेहिस्सलाम के गोहर ददाँ का हुस्न देखकर पहचान लिया के ये तो
जमाल यूसुफी की शान मालूम होती है और फिर कहने लगे के आप ही तो
यूसुफ़ नहीं हैं? फ़रमाया हाँ! मैं ही यूसुफ़ हूँ और ये मेरा भाई बिनयामिन,
अल्लाह ने हम पर बड़ा एहसान फ़रमाया है और अल्लाह परहेज़गारों और
साबिर बन्दों का अज्र ज़ाए नहीं करता।
वो सब बस्द नदामत बोले, खुदा की कसम! बेशक अल्लाह ने आपको
हम पर फज़ीलत दी और हम वाकई ख़ताकार थे हज़रत यूसुफ़ अलेहिस्सलाम
ने फ़रमाया मगर ऐ भाईयो! तुम पर मेरी तरफ से कोई मलामत नहीं अल्लाह
तुम्हें माफ करे और वो बड़ा मेहरबान है। (कुरआन करीम पारा 13 रूकू 4,
ख़ज़ायन-उल-इर्फान सफा 349 )

सबक: खुदा के मक्बूल बन्दों का ये शैवा है के वो अपनी जात
का जायज़ बदला लेने की ताकृत रखकर भी माफ फरमा देते है.

 

 

हिकायत नम्बर (116) कमीस यूसुफ़

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने भाईयों के सामने अपशाऐ राज़
फरमा दिया और बता दिया के मैं ही यूसुफ़ हूँ और फिर अपने भाईयों से

हज़रत चाकूब अलेहिस्सलाम का हाल दरयाफ्त फ़रमाया, वो कहने लगे के
आपके फिरोक में रोते रोते उनकी नज़र बहाल नहीं रही, यूसुफ़ अलैहिस्सलाम
ने फ़रमाया तो ये लो मेरी क़मीस ले जाओ, इसे वालिदे माजिद के मुंह पर
डाल दो उनकी बीनाई वापस आ जाएगी, हज़रत यूसुफ़ अलेहिस्सलाम की
इस क़मीस मुबारक की ये शान थी के किसी बीमार पर भी डाली जाती तो
वो अच्छा हो जाता, चुनाँचे वो लोग कमीस लेकर वापस लौटे और वो भाई
जिसने यूसुफ़ अलेहिस्सलाम को कुएँ में फेंकने के बाद आपकी कमीस खून
आलूद कर के याकूब अलैहिस्सलाम को दिखाई थी कहने लगा के उस दिन
भी मैंने कमीस यूसुफे उठाई थी और वालिद साहब को रंज पहुँचाया था और
आज भी मैं ही क़मीस यूसुफ़ उठाता हूँ और वालिद साहब को खूश करूंगा
चुनाँचे कमीस यूसुफ़ उसी ने उठाई और कुनआन की तरफ रवाना हुए इधर
ये लोग मिस्र से निकले और उधर कुनआन में याकूब अलेहिस्सलाम अपने
और अहबाब से फ़रमाने लगे के आज मुझे यूसुफ़ की खुश्वू आ रही है वो
कहने लगे आप तो उसी पुरानी वारफ्तगी में हैं भला अब यूसुफ़ कहाँ?
इतने में बिरादराने यूसुफ आ पहुँचे और वो कमीस हज़रत याकूब
अलेहिस्सलाम के मुंह पर डाली गई तो फौरन आपकी बीनाई फिर आई
आपने अल्लाह का शुक्र अदा किया और फरमाया मैं ना कहता था के
जो कुछ मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते। (कुरआन करीम पारा 13, रूकू 5, रूह-उल-बयान सफा 205 जिल्द 2)

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

short islamic story in Hindi

हिकायत नम्बर (1) हजरत इमाम आजमए का एक दहरिया से मुनाजरह

हमारे इमाम हजरत इमामे आजूम रजीअल्लाहो अन्ह का एक दहरिया,
खुदा की हस्ती के मुनकिर से मुनाजरा मुक्रर हुआ और मोजुओ मुनाजूरां
यही मसला था के आलम का कोई खालिक है या नहीं? इस अहम मसले
पर मुनाजूरा और फिर इतने बड़े इमाम से चुनाँचे मैदाने मुनाजरा में दोस्त
दुश्मन सभी जमा हो गए मगर हजरते इमाम आजूम वक्ते मुक्ररह से बहुत
देर के बाद मजलिस में तशरीफ्‌ लाए, दहरिया ने पूछा के आपने इतनी देर
क्यों लगाई? आपने फ्रमाया के अगर मैं इसका जवाब ये दूं के मैं एक जंगल
की तरफ निकल गया था वहाँ एक अजीब वाकेया नजूरा आया जिसको
देखकर में हैरत में आकर वहीं खड़ा हो गया और वो बाकेया ये था के दरया
के किनारे एक दरख़्त था, देखते ही देखते वो दरख़्त खुद ब खुद कट कर
जमीन पर गिर पड़ा फिर खुद उसके तख़ते तैयार हुए फिर उन तख्तों की खुद
ब खुद एक कश्ती तैयार हुई और खुद ब खुद ही दरया में चली गई और
फिर खुद ब खुद ही वो दरया के इस तरफ्‌ के मुसाफिरों को उस तरफ्‌ और
उस तरफ के मुसाफिरों को इस तरंफ्‌ लाने और ले जाने लगी, फिर हर एक
सवारी से खुद ही किराया भी वसूल करती थी,

तो बताओ तुम मेरी इस बात पर यकीन कर लोगे?

दहरिया ने ये सुन कर एक कुहेकृहा लगाया और कहा, आप जैसा बुजुर्ग
और इमाम ऐसा झूट बोले तो तआज्जुब है, भला ये काम क़हीं खुद ब खुद
हो सकते हैं? जब तक कोई करने वाला ना हो किसी तरह नहीं हो सकते।

हजरते इमाम आजम ने फ्रमाया के ये तो कुछ भी काम नहीं हैं तुम्हारे
नजदीक तो उससे भी ज़्यादा बड़े बड़े आलीशान कांम खुद ब खेद बगैंर

किसी करने वाले के तैयार होते हैं, ये जुमीन, ये आसमान, ये चाँद, ये सूरज,
ये सितारे, ये बागात, ये सदहा किस्म के रंगीन फूल और शीरीं फल ये पहाड़,
ये चौपाए, ये इंसान, और ये सारी खुदाई बगैर बनाने वाले के तैयार हो गई,
अगर एक कश्ती का बगैर किसी बनाने वाले के खुद ब खुद बन जाना झूट
है तो सारे जहान का बगैर बनाने वाले के बन जाना इससे भी ज़्यादा झूट है।
दहरिया आपकी तकरीर सुन कर दम ब खुद हैरत में आ गया और
फौरन अपने अकीदे से तायब होकर मुसलमान हो गया। ( तफ़्सीर कबीर
सफा 22 जिल्द 4)
. सबक्‌ुः- इस कायनात का यकीनन एक खालिक्‌ है जिसका नाम
अल्लाह हैं और वजूदे बारी का इंकार अक्ल के भी खिलाफ है।

 

 

हजरत इमाम जाफर सादिक्‌ और एक दहरिया मल्लाह

 

खुदा की हस्ती के एक मुनकिर की जो मललाह था हजूरत इमाम जाफर
सादिक रजीअल्लाहो अच्ह से गुफ्तगू हुई , वो मल्‍लाह कहता था के खुदा कोई
नहीं( मआज अल्लाह! ) हजरत इमाम जाफर सादिक्‌ रजीअल्लाहो अन्ह ने
उससे फ्रमया तुम जहाज रान हो, ये तो बताओ कभी समुद्री तूफान से भी
तुम्हें साबिका पड़ा? वो बोला हाँ! मुझे अच्छी तरह याद है के एक मर्तबा
समुद्र के सख्त तूफान में मेरा जहाज फंस गया था, हजरत इमाम ने फरमाया
फिर कया हुआ? वो बोला, मेरा जहाज गृर्क हो गया और सब लोग जो उस
पर सवार थे डूब कर हलाक हो गए, आपने पूछा और तुम कैसे बच गए?
बो बोला मेरे हाथ जहाज का एक तख्ता आ गया, मैं उसके सहारे तेरता हुआ
साहिल के कुछ क्रीब पहुँच गया मगर अभी साहिल दूर ही था के वो तख़्ता
भी हाथ से छूट गया, फिर मैंने खुद ही कोशिश शुरू कर दी और हाथ पैर.
मार कर किसी ना किसी तरह किनारे आ लगा, हजरत इमाम जाफ्र सादिक
रजी अल्लाहो अन्ह फ्रमाने लगे, लो अब सुनो!
हर तुम अपने जहाजु पर सवार थे तो तुम्हें अपने जहाज प्र ऐतमाद
व भरोसा था के ये जहाज पार लगा देगा और जब वो डूब गया तो फिर
तुम्हारा ऐतमाद व भरोसा उस तख़्ते पर रहा जो इत्तेफाकुन तुम्हारे हाथ लग
गया था मगर जब वो भी तुम्हारे हाथ से छूट गया तो अब सोच कर बताओ
के इस बेसहारा वक्त और बेचारगी के आलम में भी क्‍या तुम्हें ये उम्मीद थी

के अब भी कोई बचाना चाहे तो मैं बच्च सकता हूँ? वो बोला हाँ! ये उम्मीद
तो थी, हजरत ने फ्रमाया मगर वो उम्मीद थी किससे के कौन बचा सकता
है? अब वो दहरिया खामोश हो गया और आपने फ्रमया खूब याद रखो उस
बेचारगी के आलम में तुम्हें जिस जात पर उम्मीद थी वही खुदा है और उसी
ने तुम्हें बचा लिया था, मल्लाह ये सुन कर होश में आ गया और इस्लाम ले
आया। ( तफ़्सीर कबीर सफा 22/ जिल्द )

सबक: खुदा है और यक्रीनन है और मुसीबत के वक्त गैर इख़्तियारी
तौर पर भी खुदा की तरफ खयाल जाता है गोया खुदा की हस्ती का इक्रार
फिन्नी चीज है। '

हिकायात नम्बर 0) एक अक्लमंद बुढ़िया

एक आलिम ने एक बुढ़िया को चर्खा कातते देख कर फ्रमाया के
बुढ़िया! सारी उम्र चर्खा ही काता या कुछ अपने खुदा की भी पहचान की?
बुढ़िया ने जवाब दिया के बेटा सब कुछ इसी चर्खे में देख लिया, फ्रमाया!
बड़ी बी! ये तो बताओ के खुदा मौजूद है या नहीं? बुढ़िया ने जवाब दिया
के हाँ हर घड़ी और रात दिन हर वक्त खुदा मौजूद है, आलिम ने फ्रमाया
मगर इसकी दलील? बुढ़िया बोली, दलील ये मेरा चर्खा, आलिम ने पूछा
ये कैसे? वो बोली वो ऐसे के जब तक मैं इस चर्खे को चलाती रहती हूँ ये
बराबर चलता रहता है और जब मैं इसे छोड़ देती हूँ तब ये ठहर जाता है
तो जब इस छोटे से चर्खे को हर वक़्त चलाने वाले की जरूरत है तो जमीन
व आसमान, चाँद सूरज के इतने बड़े चर्खो को किस तरह चलाने वाले की
जरूरत ना होगी? पस जिस तरह जमीन व आसमान के अर्खें को एक चलाने
वाला चाहिए जब तक वो चलाता रहेगा ये सब चर्खे चलते रहेंगे और जब
वो छोड़ देगा तो ये ठहर जाऐंगे मगर हम ने कभी जुमीम ब आसमान, चाँद
सूरज को ठहरे नहीं देखा तो जान लिया के उनका चलने वाला हर घड़ी
मौजूद है। मौलवी साहब ने सवाल किया, अच्छा ये बताओ के आसमान
व जमीन का चर्खा चलाने वाला एक है या दो? बुढ़िया ने जवाब दिया के
एक है और इस दावे की दलील भी यही मेरा चर्खा है क्‍यों के-जब इस चर्खे
को मैं अपनी मर्जी से एक तरफ्‌ को चलाती हूँ ये चर्खा मेरी मर्जी से एक
ही तरफ्‌ को चलता है अगर कोई दूसरी चलाने वाली भी होती फिर या तो
वो मेरी मददगार होकर मेरी मर्जी के मुताबिक्‌ चर्खा चलाती तब तो चर्खा
की रफ्तार तेज हो जाती और इस चर्खें की रफ़्तार में फर्क आकंर नतीजा

हासिल ना होता और अगर वो मेरी मर्जी के खिलाफ और मेरे चलाने की
मुखालिफ जहेत पर चलाती तो ये चर्खा चलने से ठहर जाता या टूट जाता
मगर ऐसा नहीं होता इस वजह से के कोई दूसरी चलाने वाली नहीं है इसी
तरह आसमान व जुमीन का चलाने वाला अगर कोई दूसरा होता तो जुरूर
आसमानी चर्खा की रफ़्तार तेज होकर दिन रात के निजाम में फर्क आ जाता
या चलने से ठहर जाता या टूट जाता जब ऐसा नहीं है तो जरूर आसमान व
जमीन के चर्खे को चलाने वाला एक ही है। ( सीरत-उल-सालेहीन स०:3)

सबक्‌ः- दुनिया की हर चीज अपने खालिक्‌ के वजूद और उसकी
यक्‍ताई पर शाहिद है मगर अक्ले सलीम दरकार है। ब

 

सय्यद-उल-अम्बिया हुजर अहमद मुजतबा मोहम्मद मुसतफाएं

वमा अरसल्नाकाइल्‍ला रहमतल-लिलआलमगीन

 

हिकायत जिब्राईले अमीन और एक नूरानी तारा

 

एक मर्तबा हुजर॒ सल-लललाहो अलेह व सलल्‍लम ने हजरत जिब्राईले
अमीन अलेहिस्सलाम से दरयाफ्त फ्रमाया के ऐ जिन्नाईल तुम्हारी उम्र कितनी
है? तो जिब्नाईल ने अर्ज किया हुजर मुझे कुछ खबर नहीं हाँ इतना जानता
हूँ के चौथे हिजाब में एक नूरानी तारा सत्तर हजार बरस के बाद चमकता
था, मैंने उसे बहत्तर हज़ार मर्तबा चमकते देखा है, हुजर अलेहिस्सलाम ने
ये सुनकर फ्रमाया व इज्ज़ती रब्बी अना जालिकल कोकब मेरे रब की
इज्जत की कसम! मैं ही वो नूरानी तारा हूँ। ( रूह-उल-बयान सफा 9#
जिल्द ) क्‍ ;

सबक्‌ः- हमारे हुलर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम कायनात की
हर चौज से पहले पैदा फ्रमाए गए हैं और आपका नूरे पाक उस वक्त भी
था जब के ना कोई फरिश्ता था ना कोई बशर ना जमीन थी ना आसमातर
और ना कोई और शै। फ्सल-लल्लाहो' अलेह व सलल्‍लम।

 

 

हिकायत  यमन का बादशाह

 

किताब-उल-मुसतजुरफ और हज्जतुल्लाह अली अलआलमीन और
तारीखे इल्ले असाकर में है के हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम से एक
हजार साल पैश्तर यमन का बादशा तुब्बओ अव्वल हमेरी था एक मर्तबा वो
अपनी सल्तनत के दौरे को निकला, बारह हजार आलिम और हकीम और
एक लाख बत्तीस हजार सवार और एक लाख तेरह हजार पियादे अपने
हमराह लिए और इस शान से निकला के जहाँ भी पहुँचता उसकी शान व
शौकते शाही देखकर मख्लूके खुदा चारों तरफ से नजारे को जमा हो जाती
थी, ये बादशाह जब दौरा करता हुआ मक्का पहुँचा तो अहले मक्का से कोई
उसे देखने ना आया, बादशा हैरान हुआ और अपने वजीरे आजम से इसकी
वजह पूछी तो उसने बताया के इस शहर में एक घर है जिसे बैत-उल्लाह
कहते हैं, उसकी और उसके खादिमों की जो यहाँ के बाशिन्दे हैं तमाम लोग
बेहद तअजीम करते हैं और जितना आपका लश्कर है उससे कहीं ज़्यादा दूर
और नजदीक के लोग उस घर की जियारत को आते हैं और यहाँ के बाशिन्दों
की खिदमत करके चले जाते हैं, फिर आपका लश्कर उनके खयाल में क्‍यों
आए, ये सुन कर बादशाह को गस्सा आया और कसम खा कर कहने लगा
के मैं उस घर को खुदवा दूंगा और यहाँ के बाशिन्दों को कृत्ल करवाऊँगा,
ये कहना था के बादशा के नाक, मुंह और आँखों से खून बहना शुरू हो गया
और ऐसा बदबूदार माद्दा बहने लगा के उसके पास बैठने की भी किसी को
ताक॒त ना रही, इस मर्ज का इलाज किया गया मगर अफाका-ना हुआ शाम
के वक्त बादशा के हमराही उलमा में से एक आलिम रब्बानी तशरीफ लाए
और नब्जु देख कर फ्रमाया, मर्ज आसमानी है और इलाज जमीन का हो रहा
है, ऐ बादशाह! आपने अगर कोई बुरी नीयत की है तो फौरन उससे तौबा
कोजिए, बादशाह ने दिल ही दिल में बेत-उल्लाह शरीफ और खद्दामे कअबा
के मुतअल्लिक्‌ अपने इरादे से तौबा की , तौबा करते ही उसका वो खून और
माद्दा बहना बन्द हो गया और फिर सेहत की खुशी में उसने ह#(-उल्लाह
शरीफ को रेशमी गिलाफ चढ़ाया और शहर के हंर बशिन्दे को सात सात
अशर्फी और सात सात रेशमी जोड़े नज् किए।

फिर यहाँ से चल कर जब मदीना मुनव्वरह पहुँचा तो हमराही उल्पां ने
जो कृतुब समावियां के आंलिम थे वहाँ की मिट्ी को सूंघा और कंकरियों को
देखा और नबी आखिर-उज़्जमाँ की हिज़तगाह की जो अलामतें उन्होंने पंढी

थीं, उनके मुताबिकु उस सरजमीन को पाया तो बाहम अहेद कर लिया के हर

यहाँ ही मर जाएँगे मगर इस सर जमीन को ना छोड़ेंगे, अगर हमारी किस्पो
ने यावरी की तो कभी ना कभी जब नबी आखिर-उज्जमो सल-लल्लाहे
अलेह व सल्‍लम यहाँ तशरीफ्‌ लायेंगे हमें भी जियारत का शर्फ हासिल है
जाएगा, वरना हमारी क॒ब्रों पर तो जरूर ही कभी ना कभी उनको जूतियो
की मुकृदस खाक उड़कर पड़ जाएगी जो हमारी निजात के लिए काफी है।
ये सुनकर बादशाह ने उन आलिमों के वास्ते चार सौ मकान
और इस बड़े आलिमे रब्बानी के मकान पास हुजर सल-लल्लाहो अलेह 4
सललम की खातिर एक दो मंजिला उम्दा मकान तैयार कराया और वसीयत
करं दी के जब आप तशरीफ्‌ लायें तो ये मकान आपकी अरामगाह होगी
और उन चार सौ उल्मा की काफी माली इम्दाद भी की और कहा, तुप
हमेशा यहीं रहो और फिर इस बड़े आलिमे रब्बानी को एक खत लिख दिया
और कहा के मेरा ये खत इस नबी आखिर-उज्जमाँ सल-लल्लाहो अलेह व
सलल्‍लम की खिदमते अक्दस में पेश कर देना और अगर जिन्दगी भर तुमें
सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम की ज़्यारत का मौका ना मिले तो अपनी
औलाद को बसीयत कर देना के नसस्‍लन बाद नस्ल मेरा ये खृत महेफज्‌
हत्ता के सरकारे अब्दक्रार सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की खिदमत में
पेश किया जाए, ये कहकर बादशाह वहाँ से चल दिया।

वो खत नबी करीम सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की खिदमत में एक
हजार साल बाद पेश हुआ कैसे हुआ और खूत में क्‍या लिखा था? सुनिए
और अजूमते मुसतफा सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम का एत्राफ फ्रमाईए,
खुत का मजमून ये था:

( तर्जुमह )“कमतरीन मख्लूकू तबओ अव्वल हमेरी की तरफ से,
शफीअ-उलमुजूुनबीन सय्यद-उलमुर्सलीन मोहम्मद रसूल अल्लाह
सल-लल्लाहो व सल्‍लम अम्मा बाद: ऐ अल्लाह के हबीब मैं आप पर ईमान
लाता हूँ और जो किताब आप पर नाजिल होगी उस पर ईमान लाता हूँ और
आपके दीन पर हूँ, पस अगर मुझे आपकी ज़्यारत का मौका मिल गया तो |
बहुत अच्छा व गुनीमत और अगर मैं आपकी ज़्यारत ना कर सका तो मेरी |
शफाअत फ्रमाना और कयामत के रोज मुझे फ्रामोश ना करना, मैं आपकी
पहली उम्मत में से हूँ और आपके साथ आपकी आमद से पहले ही बैत करता.
हूँ, मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह एक है और आप उसके सच्चे रसूल हैं।”

शाहे यमन का ये खत नसस्‍लन बाद नस्ल उन चार सौ उल्मा के अन्दर

 

हर्जुजान की हैसियत से महेफूज चला आया यहाँ तक के एक हजार साल
का अर्सा गुजर गया, उन उल्मा की औलाद इस कसरत से बढ़ी के मदीने की
आबादी में कई गुना इजाफा हो गया और ये खत दस्त ब दस्त मओ वसीयत
के उस बड़े आलिमे रब्बानी की औलाद में से हजरत अबु अय्युब अनसारी
रजी अल्लाहो अन्ह के पास पहुँचा और आपने वो खत अपने गूलामे खास
अबु लैला की तहवील में रखा और जब हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
मक्का-ए-मोअज्जुमा से हिज़त फ्रमा कर मदीना मुनव्वरह पहुँचे और
मदीना मुनव्वरह की अलविदाई घाटी सनियात की घाटिय६ों से आपकी ऊँटनी
नमूदार हुई और मदीने के खुश नसीब लोग महेबूबे खुदा का इस्तक्‌बाल करने
को जूक दर जूक आ रहे थे और कोई अपने मकानों का सजा रहा था तो कोई
गलियों और सड़कों को साफ कर रहा था कोई दावत का इन्तेजाम कर रहा
था और सब यही इसरार कर रहे थे के हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम
मेरे घर तशरीफ फरमा हों। हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम ने फरमाया
के मेरी ऊँटनी की नकेल छोड़ दो जिस घर में ये ठहरेगी और बैठ जाएगी
वही मेरी कुयामंगाह होगी, चुनाँचे जो दो मंजिला मकान शाहे यमन तबओ
ने हुजूर की खातिर बनवाया था वो उस वक्त हजूरत अबु अय्युब अनसारी
रजी अल्लाहो अन्ह की तहवील में था, उसी-में हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व
सललम की ऊँटनी जाकर ठहर गई। लोगों ने अबु लैला को भेजा के जाओ
हुजूर को शाहे यमन तबओ का खत दे आओ जब अबु लैला हाजिर हुआ तो
हुजूर ने उसे देखते ही फ्रमाया तू अबु लैला है? ये सुनकर अबु लैला हैरान
हो गया हुजर ने फिर फ्रमाया, मैं मोहम्मद रसूल अल्लाह हूँ, शाहे यमन का
जो मेरा खत तुम्हारे पास है लाओ वो मुझे दो चुनाँचे अबु लैला ने वो खत
दिया और और हुजर ने पढ़ कर फ्रमाया, सालेह भाई तबओ को आफूरी व
शाबास है। ( मेजान-उल-दयान सफा 47)

हे सबके :- हमारे हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम का हर जमाने
में चर्चा रहा और खुश किस्मत अफ्राद ने हर दौर में हुजर से फेज पाया और
मोहम्मद सल-लल्लाहो अलेह व सललम अगली पिछली तमाम बातें जानते हैं
और ये भी मालूम हुआ के हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की आमद
आमद की खुशी में कमानात और बाजारों को सजाना और मुजुय्यन करना
सहाबाइक्राम की सुन्नत है, फिर आज अगर हुजर की आमद की खुशी में
बाजारों को सजाया जाए घरों को मुजृय्यन किया जाए और जलूस निकाला
जाए तो उसे बिदअत कहने वाला खूद क्‍यों बिदअती ना होगा।

हिकायत नम्बर हजरत सिद्दीके अक्बर रजी अल्लाहो अन्ह का ख़्वाब

 

 

हजरत सिद्दीके अक्कर रजी अल्लाहो अन्ह कब्ले अज॒ इस्लाम एक
बहुत बड़े ताजिर थे, आप तिजारत के सिलसिले में मुल्के शाम में तशरीफ्‌
फ्रमा थे के एक रात ख़्वाब में देखा के चाँद और सूरज आसमान से उतर
कर उनकी गोद में आ पड़े हैं, हजरते सिद्दीके अक्बर रजी अल्लाहो अन्ह
ने अपने हाथ से चाँद और सूरज को पकड़ कर अपने सीने से लगाया और
उन्हें अपनी चादर के अन्दर कर लिया सुबह उठे तो एक इसाई राहिब के
पास पहुँचे और उससे इस ख़्वाब की ताबीर पूछी, राहिब ने पूछ आप कोन
हैं? आपने फ्रमाया में अबु बक्र हूँ और मक्का का रहने वाला हूँ राहिब ने
पूछा कौन से कुबीले से हैं आप? फ्रमाया, बनू हाशिम से, और जूरियाऐ
मआश क्या है? फरमाया तिजारत! राहिब ने कहा तो फिर गौर से सुन लो
नबी आखिर-उज्जमाँ हजरते मोहम्मद रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो अलेह
व सल्‍लम तशरीफ ले आए हैं वो भी इसी कबीले बनी हाशिम से हैं और वो
आख़री नबी हैं और अगर वो ना होते तो खुदाऐे तआला जमीन व आसमान
को पैदा ना फरमाता, वो अव्वलीन व आखरीन के सरदार हैं और ऐ अबु
बक्र! तुम उसके दीन में शामिल होगे और उसके वजीर और उसके बाद
उसके खलीफा बनोगे ये है तुम्हारे ख़्वाब की ताबीर और ये भी सुन लो मेंने
उस पाक नबी की तारीफ व नाअत तौरात व इंजील में पढ़ी है और मैं उस
पर ईमान ला चुका हूँ और मुसलमान हूँ लेकिन इसाईयों के खौफ से अपने
ईमान का इजुहार नहीं किया। हजुरते सिद्दीक्‌ अकबर रजी अल्लाहो अन्ह ने
जब अपने ख़्वाब की ये ताबीर सुनी तो इश्के रसूल का जज़्बा बैदार हुआ और
आप फौरन मक्का मोअज्ज्मा में वापस आए और हुजर की तलाश करके
बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए और दीदारे पुर अनवार से अपनी आँखों को
ठंडा किया। हुज॒र ने फ्रमाया, अबु बक्र! तुम आ गए, लो अब जल्दी करो
और दीनें हक्‌ में दाखिल हो जाओ। सिद्दीके अकबर ने अर्ज किया बहुत अच्छा
हुजूर! मगर कोई मौजजा तो दिखाईये। हुजूर ने फरमाया, वो ख़्वाब जो शाम
में देख कर आए हो और उसकी तांबीर जो उस राहिब से सुनकर आए हो
मेरा ही तो मौजजा है, सिद्दीके अक्बर ने ये सुन कर अर्ज किया : सद्क्ती
बा रसूलअल्लाही/ अगा अशहदअन्नाका रसूलअल्लाह सच फ्रमाया,
अल्लाह के रसूल आपने और मैं गवाही देता हूँ के आप वाकई अल्लाह सच्चे रसूल हैं (जामओ अलमोजजात सफा 4)

सबक्‌ः- हजूरत अबु बक्र सिद्दीक्‌ रजी अल्लाहो अन्ह हुजर

सल-लल्लाहा तआला व सलल्‍लम के वजीर और खलीफा बरहक्‌ हैं
हमारे हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सललम से कोई बात छुपी नहीं रहती आप
दानाऐ गयूब हैं और ये भी मालूम हुआ के तमाम मख़्लूक्‌ हमारे हुज्र के ही
सदके में पेदा की गईं है अगर हुज॒र ना होते तो कुछ ना होता!

बोजोनाथेवो कुछ ना था, वो जो ना हों तो कुछ ना ही!

जान हैं वो जहान की, जान है तो जहान हैं

 

हिकायत इबलीस का पोता

 

बेहेकी में अमीर-उल-मोमिनीन हजरते उमर फारूक्‌ू रजी अल्लाहो
अन्ह से रिवायत है के एक रोज हम हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम
के हमराह तहामा की पहाड़ी पर बैठे थे के अचानक एक बूढ़ा हाथ में असा
लिए हुए हुज॒र रसूल-उले-सकलेन सय्यद-उल-अम्बिया सल-लल्लाहो
तअला अलेह व सल्‍लम के सामने हाजिर हुआ और सलाम अर्ज किया, हुज॒र
ने जवाब दिया और फरमाया, उसकी आवाज जिनों की सी है, फिर आपने
उससे दरयाफ्त किया तू कौन है? उसने अर्ज किया मैं जिन्न हूँ मेरा नाम हामा
है, बेटा हेम का और हेम बेटा लाकीस का और लाकीस बेटा इबलीस का है,
हुज॒र ने फ्रमाया तो गोया तेरे और इबलीस के दरमियान सिर्फ दो पुछतें हैं,
फिर फ्रमाया अच्छा ये बताओ तुम्हारी उम्र कितनी है? उसने कहा या रसूल
अल्लाह! जितनी उप्र दुनिया की है उतनी ही मेरी है कुछ थोड़ी सी कम है,
हुजर जिन दिनों काबील ने हाबील को कत्ल किया था उस वक्त मैं कई बरस
का बच्चा ही था मगर बात समझता था, पहाड़ों में दौड़ता फिरता था और
लोगों का खाना व गलला चोरी कर लिया करता था और लोगों के दिलों में
वसवसे भी डाल लेता था के वो अपने ख़वीश व अक्रबअ से बदसलूकी करें।

हुजर ने फ्रमाया: तब तो तुम बहुत बुरे हो, उसने अर्ज की हुजर
मुझे मलामत ना फ्रमाईये इसलिए के अब मैं हुज॒र की खिदमत में तोबा
करने हाजिर हुआ हूँ, या रसूल अल्लाह! मैंने हजरते नूह अलेहिस्सलाम से
मुलाकात की है और एक साल तक उनके साथ उनकी मस्जिद में रहा हूँ,
उससे पहले मैं उनकी बारगाह में भी तौबा कर चुका हूँ, हजरते हूद, हजरते
याकूब और हजरते यूसुफ अलेहिस्सलाम की सोहबतों में भी रह चुका हूँ
और उन से तौरात सीखी है और उनका सलाम हजरत ईसा अलेहिस्सलाम को

आजा था और ऐ नबियों के सरदार ईसा अलेहिस्सलाम ने फ्रमाया था।
अंगर तू मोहम्मद रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम है
मुलाकात करे तो मेरा सलाम उनको पहुँचाना , सो हुजूर! अब मैं इस अमान
से सबुकदोश होने को हाजिर हुआ हूँ और ये भी आरेजू है के आप अपन
जबाने हक तर्जुमान से मुझे कुछ कलाम अल्लाह तलीम फ्रमाईये, हज
अलेहिस्सलाम ने उसे सूरह मुरसलात, सूरह अम्मायतासअलून, अख़्लास आई
मऊजतीन और इजा अश्शम्स तालीम फ्रमायीं और ये भी फरमाया के
हामा! जिस वक्त तुम्हें कोई अहेतियाज हो फिर मेरे पास आ जाना और हु
से मुलाकात ना छोड़ना। न |
हजरते उमर रजी अल्लाहो अन्ह फरमाते हैं हुज॒र अलेहिस्सलाम ने वे
बिसाल फ्रमाया लेकिन हामा की बाबत फिर कुछ ना फ्रमाया, खुदा जाने
हामा अब भी जिन्दा है या मर गया है ( खुलासत-उल-तफासीर सफा ॥7)
सबकुः- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्ल॥
रसूल-उल-सकूलेन और रसूल अलकुल हैं और आपकी बारगाहे आलिय

 

मक्का मोअज्जमा में एक काफिर वलीद नामी रहता था, उसका एक
सोने का बुत था जिसे वो पूजा करता था एक दिन उस बुत में हरकत पैदा हु
और वो बोलने लगा, उस बुत ने कहा। “लोगो! मोहम्मद अल्लाह का रसूल
नहीं है, उसकी हर गिजु तसदीक्‌ ना करना।” ( मआजू अल्लाह ) बलीद बढ़
खुश हुआ और बाहर निकल कर अपने दोस्तों से कहा, मुबारकबाद! आज
मेरा मअबूद बोला है और साफ साफ उसने कहा है के मोहम्मद अल्लाह का
रसूल नहीं है, ये सुनकर लोग उसके घर आए तो देखा के वाकई उसका बुर
ये जुमले दोहरा रहा है, वो लोग भी बहुत खुश हुए और दूसरे दिन एक आए
एलान के जूरिये बलीद के घर में एक बहुत बड़ा इजतमअ हो गया
उस दिन भी वो लोग बुत के मुंह से वही जुमला सुनें, जब बड़ा इजतमअ हे
गया तो उन लोगों नें हुजरः सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम को भी दअवत रब
ताके हुज॒र खुद भी तशरीफ्‌ लाकर चुत के मुंह से वही बकवास सुन जा"
बुनाँचे हुजर॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम भी तशरीफ ले आए, जब हर्य्‌'
शरीफ लाए तो बुत बोल उठा: | है

“ऐ मक्का वालो! खूब जान लो के मोहम्मद अल्लाह के सच्छे रसूल |

उनका हर इर्शाद सच्चा है और उनका दीन बरहक्‌ है तुम और तुम्हारे बुत
झूटे, गुमराह और गुमराह करने वाले हैं अगर तुम इस सच्चे रसूल पर ईमान
ना लाओगे तो जहन्नम में जाओगे पस अक्लमंदी से काम लो और इस सच्चे
रसूल की गलामी इख़्तियार कर लो।” ।

बुत का ये वाजु सुन कर वलीद बड़ा घबराया और अपने मअबूद को
पकड़ कर जमीन पर दे मारा और उसके टुकड़े दुकड़े कर दिए।

हुज॒र सल-लल्लाहो अलेह व सललम फातेहाना तौर पर वापस हुए तो
रास्ते में एक घोड़े का सवार जो सब्जू पोश था हुजूर से मिला उसके हाथ
में तलवार थी जिससे खून बह रहा था, हुज॒र ने फरमाया तुम कौन हो? वो
बोला हुज॒र! मैं जिन हूँ और आपका गूलाम और मुसलमान हूँ, जबले तूर पर
रहता हूँ, मेरा नाम महीन बिन अलअओबर है, मैं कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर
गया हुआ था आज घर वापस आया तो मेरे घर वाले रो रहे थे, मैंने वजह
दरयाफ्त की तो मालूम हुआ के एक काफिर जिन्न जिसका नाम मुसफ्फ्र था
वो मक्का में आकर वलीद के बुत में घुस कर हुजर के खिलाफ बकवास कर
गया है और आज फिर गया है ताके फिर बुत में घुसकर आपके मुतअल्लिक्‌
बकवास करे या रसूल अल्लाह! मुझे सख्त गूस्सा आया, मैं तलवार लेकर
उसके पीछे दौड़ा और उसे रास्ते ही में कत्ल कर दिया और फिर मैं खुद
बलीद के बुत के अन्दर घुस गया और आज जिस क॒द्र तकरीर की है मैंने ही
की है या रसूल अल्लाह! कक

हुजर ने ये किस्सा सुना तो आपने बड़ी मुसर्रत का इजहार किया और उस
अपने गुलाम जिन्न के लिए दुआ फ्रमाई। ( जाम” -अलमौजजात सफा 7)

सबक :- हमारे हुजर जिनों के भी रसूल / और हुज॒र सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍लम की शाने पाक के खिलाफ सुनने सुनाने के लिए कोई जल्सा
करना ये बलीद जैसे काफिर की सुन्नत है।

 

हिकायत एक जन्तर मन्तर से इलाज करने वाला

 

कबीलाऐ अज्दशनवत में एक शख्स था जिसका नाम जमाद थां वो
अपने जन्तर मन्तर से लोगों के जिन्न भूत बगेरा के साए उतारा करता था एक
मर्तबा वो मक्का मोअज़्ज्मा में आया तो बाज लोगों को ये कहते सुना के
मोहम्मद को जिन्न का साया है या जुनून है (मआजुअल्लाह ) जुमाद ने कहा
मैं ऐसे बीमारों का इलाज अपने जन्तर मन्तर से कर लेता हूँ मुझे दिखाओं,

वो कहाँ है? वो उसे हुज॒र के पास ले आए। जुमाद जब हुजूर के पास बैठा तो :
हुजर ने फ्रमाया, जमादं! अपना जन्तर मन्तर फिर सुनाना पहले मेरा कलाम ;
सुनो चुनाँचे आपने अपनी जूबाने हक्‌ से ये ख॒त्बा पढ़ना शुरू किया:

” अल्हग्दुल्लाही नहमदहू व मसंतड़नुहूं व नसतग्राफिरहू व
नोअमिन्‌ बिहि व नतावक्‍्कलू अलेडि व नऊजूबिल्लाही मिन शुरूरी
अनफुसिना व मिन सब्यीआती अआमालिना मवहवीहील्लाह फूला
मुजुल्ल-ललाहू वमंब-वुजालिलहु फूला हादीयलाहू व अशहद
अन्ला-ईलाहा इल-लल्लाहू वहदाहू लाग्रीकलाहू व अशहदु, अन्ना
मोहस्मदन अब्दुह्द व रसूलुह्ू |

जुमाद ने ये ख॒त्वाऐ मुबारका सुना तो मबहूत रह गया और अर्ज करने
लगा हुजर! एक बार फिर पढ़िए। हुजर नें फिर यही खुत्वा पढ़ा, अब जुमाद
( वो जमाद जो साया उतारने आया था उसका अपना सायाऐ कुफ्र उतरता है
देखिये ) ना रह सका और बोला:

“खुदा की कसम! मैंने कई काहिनों, साहिरों और शायरों की बातें
सुनी लेकिन जो आपसे मैंने सुना है ये तो मअनन एक बहेरे जुखार है अपना
हाथ बढ़ाईए, मैं आपकी बैअत करता हूँ, ये कहकर मुसलमन हो गया और
जो लोग उसे इलाज करने के लिए लाए थे हैरान व पशेमान वापस फिरे ”
( मुस्लिम सफा 320 जिल्द: ) ।

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम
जुबाने हक तर्जुमान में वो तासीर पाक थी के बड़े बड़े संग दिल मोम हो
जाते थे और ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर को जो लोग साहिर व मजनू
कहते थे दरअसल वो खुद ही मजनून थे इसी तरह आज भी जो शख्स हुजर
के इल्म व इख्तियार और आपके नूरे जमाल का इंकार करता है वो दरअसल
खुद ही जाहिल, सियाह दिल और सियाह रू है।

 

हिकायत रकाना पहलवान

 

बनी हाशिम में एक मुश्रिक शख्स रकाना नामी बड़ा जुबरदस्त और
दिलैर पहलवान था उसका रिकार्ड था के उसे किसी ने ना गिराया था। वो एक
जंगल में जिसे इज़्म कहते थे रहा करता था बकरियाँ चराता था। और बड़ा
माल॒दार था, एक दिन हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम अकेले
उस तरंफ्‌ जा निकले, रकाना ने आपको-देखा तो आप के पास आकर कहने
लगा: ऐ मोहम्मद! त्‌ ही वो है जो हमारे लात व उज़्जा की तोहीन व तहकीरें

करता है और अपने एक खुदा की बड़ाई बयान करता ह? अगर भरेरा तुझ
से ताललुक रहमी ना होता तो आज मैं तुझे मार डालता, आ मेरे साथ कुश्ति
कर, तू अपने खुदा को पुकार! मैं अपने लात व उज़्जा को पुकारता हूँ देखें
तो तुप्हारे खुदा में कितनी ताकत है? हुज॒र ने फरमाया रकाना। अगर कुष्टित
ही करना है तो चल पैं तैयार हूँ, रकाना ये जवाय सुनकर अव्वल तो हैरान
हुआ और फिर बड़े गरूर के प्ताथ मुकायले में खड़ा हो गया।

हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ने पहली ही झपट में उसे
गिरा लिया और उसके सीने पर बैठ गए, रक्काना उप्र में पहली मर्तबा गिर
कर बड़ा शर्मिंदा भी हुआ और हैगन भी, और बोला ऐ मोहम्मद! मेरे सीने
से उठ खड़ा हो मेरे लात व उज़्जा ने मेरी तरफ ध्यान नहीं किया एक बार
और मौका दो और दूसटी मर मर्तबा कुश्ति लड्ढं , हुजर सीने से उठ खड़े हुए और
दोबारा कुश्ति के लिए भी उठा, हुज॒र न दूसरी मर्तबा भी रकाना को
पल भर में गिरा लिया, रकाना ने कहा ऐ मोहम्मद! मालूम होता है आज
मेरा लात व उज़्जा मुझ पर नाराज है और तुप्हारा खुदा तेरी मदद कर रहा
है, खैर एक मर्तवा और आओ, अब की दफा लात व उज्जा जरूर मेरी
मदद करेंगे, हुजर ने तीसरी मर्तबा की कुश्ति भी मंजर फरमाई और तीसरी
मर्तवा भी हुज॒र ने उसे पिछाड़ दिया, अब तो रकाना बड़ा ही शर्मिंदा हुआ
और बोला ऐ मोहम्मद! मेरी इन बकरियों में जितनी चाहों बकरियाँ ले लो
हुजर ने फ्रमाया रकाना मुझे तुम्हारे माल की जरूरत नहीं , हाँ मुसलमान हो
जाओ ताके जहन्नम से बच जाओ। वो बोला या मोहम्मद! मुसलमान तो हो
जाऊं मगर नफ़्स खझिझकता है के मदीना और नवाह की औरतें और बच्चे
क्या कहेंगे के इतने बड़े पहलवान ने शिकस्त खाई और मुसलमान हो गया।

हुज॒र ने फ्रमाया तो तेरा माल तुझी को मुबारक! ये कहकर आप
वापस्त तशरीफ ले आए, इधर हजरत अबु बक्र व उमर रजी अल्लाहो अन्हुमा
आपकी तलाश में थे और ये मालूम करके के हुजर वादीऐ इज़्म की तरफ
तशर्गफ ले गए हैं। मुताफुक्किर थे के इस तरफ्‌ रकाना पहलवान रहता है
मुबादा हुजर को ईजा दे, हुजर को वापस तशरीफ लाते देखकर दोनों हुजर
की ग्विदमत में हाजिर हुए और अर्ज किया या रसूल अल्लाह! आप इधर
अकंल क्‍यों तशरीफ ले गए थे जब के उस तरफ रकाना पहलवान जो बड़ा
जोरआबर और दुश्पने इस्लाम है, रहता है? हुजर ये सुनकर मुसकुराए और
फरमाया जब मेरा अल्लाह हर वक्त मेरे साथ है फिर किसी रकाना बकाना
की क्‍या परवाह। लो इस रकाना की पहलवानी का किस्सा सुनो, चुनाँखे

हुजर ने सारा किस्सा सुनाया, सिद्दीक्‌ व फारूक सुन सुन कर खुश होने लगे
और अर्ज किया हुजर वो तो ऐसा पहलवान था के आज तक उसे किसी नेः
गिराया ही ना था, उसे गिराना गिराना अल्लाह के रसूल ही का काम है:( अबू
दाऊंद सफा 209 जिल्द 2)

सबकः:- हमारे हुजर सल-लल्लाहों तआला अलेह व सलल्‍लम हर
फज़्लो कमाल के मुनब्बओ व मख़्जन हैं और दुनिया की कोई ताकत हुजर के
मुकाबले में नहीं ठहर सकती और मुखालफीन के दिल भी हुज॒र के फज्लो
कमाल को जानते हैं लेकिन दुनिया की आर से उसका इक्रार नहीं करते।

 

 

हिकायत खालिद की टोपी

 

हजरत खालिद बिन वलीद रजी अल्लाहो अन्ह ज़ो अल्लाह की तलवारों
में से एक तलवार थे, आप जिस मैदाने जंग में तशरींफ्‌ ले जाते अपनी टोपी
को जुरूर सर पर रख कर जाते और हमेशा फतेह ही पाकर लौटते, कभी
शिकस्त का मुंह ना देखते, एक मर्तबा जंगे यरमूक में जब के मैदाने जंग
गर्म हो रहा था हजरत खालिद की टोपी गुम हो गई , आपने लड़ना छोड़ कर
टोपी की तलाश शुरू कर दी, लोगों ने जब देखा के तीर और पत्थर बरस
रहे हैं, तलवार और नेजेह अपना काम कर रहे हैं, मौत सामने है और उस
आलम में खांलिद को अपनी टोपी की पड़ी हुई है और वो उसी को दूंडने
में मसरूफ हो गए हैं तो उन्होंने हजरत खालिद से कहा, जनाब टोपी का
खयाल छोड़िये और लड़ना शुरू किजिए, हजरत खालिद ने उनकी उस बात
की परवाह ना की और टोपी की बदस्तूर तलाश शुरू रखी, आखिर टोपी
उनको मिल गई तो उन्होंने खुश होकर कहा भाईयो! जानते हो मुझे ये टोपी
क्यों इतनी अजीज है? जान लो के मैंने आज तक जो जंग भी जीती इसी टोपी
के तुफल, मेरा क्या है सब इसी की बर्कतें हैं, मैं इसके बगैर कुछ भी नहीं
और अगर ये मेरे सर पर हो तो फिर दुश्मन मेरे सामने कुछ भी नहीं, लोगों
ने कहा आखिर इस टोपी की क्‍या खूबी है? तो फ्रमाया, ये देखो इसमें
क्या है, ये हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम के
सर अनवर के बाल मुबारक हैं जो मैंने इसी में सी रखे हैं। हुज॒र एक मर्तबा
उमरह बजा लाने को बैअत-उल्लाह शरीफ तशरीफ ले गए और सर मुबारक
के बाल उतरवाए तो उस वक्त हम में से हर एक शख्स बाल मुबारक लेने
की कोशिश करं रहा था और हर एक दूसरे पर गिरता था-तो मैंने भी इसी
क्रोशिश में आंगे बढ़ कर चंन्द बाल मुबारक हांसिल कर लिए थे और फिर

इस टोपी में सी लिए, ये टोपी अब मेरे लिए जुमला बर्कातव फतूहात का
जरिया है, मैं इसी के सदके में हर मैदान का फातहे बनकर लौटता हूँ फिर
बताओ! ये टोपी अगर ना मिलती तो मुझे चैन कैसे आता? ( हुज्जत-उल्लाह
अललआलमीन सफा 282 )

सबक: - हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम
ही जुमला बर्कोत व इनामात का जूरिया हैं और आपका बाल बाल शरीफ
बर्कत व रहमत है और ये भी मालूम हुआ के सहाबाऐ इक्राम अलेहिम
अर्रिजुवान हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम से मुतअल्लिक्‌
अशिया को बतौर तबर््रक अपने पास रखते थे और जिसके पास आपका बाल
मुबारक भी होता अल्लाह तआला उसे कामयाबियों से सरफ्राज्‌ फ्रमाता था।

 

हिकायत  बाल का कमाल

 

हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहों तआला अलेह व सलल्‍लम की रेश
मुबारक के दो बाल मुबारक हजूरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह
को मिल गए, आप उन दो बालों को बतौर तबररूक घर ले आए और बड़ी
तअजीम के साथ अन्दर एक जगह रख दिए, थोड़ी देर. के बाद अन्दर से
करआन पढ़ने की आवाजें आने लगीं, सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहो अन्ह
अन्दर गए तो मुलाकात की आवाजें तो आ रही थीं मगर पढ़ने वाले नजर
ना आते थे, हजरत सिद्दीके अकबर रजी अल्लाहों अन्ह ने हुजर की खिदमत
में हाजिर होकर सारा किस्सा अर्ज किया तो हुज॒र ने मुसक्रा कर फ्रमाया

उन्नत मलाएकता यजत्मीऊना अला शओरी व यकराऊनल क रओन

“ये फरिश्ते हैं जो मेरे बाल के पास जमा होकर करआन पढ़ते
हैं / जामअ-अल-मौजजात सफा 62)

सबक्‌:- हुजर सरवरे आलम' सल-लल्लाहो व्शाला अलेह व
सललम का हर बाल मुनब्बओ अलकमाल है और आपका बाल बाल शरीफ
जियारतगाहे खुलायक्‌ है, फिर जिन लोगों के बाल मूंड कर नाई नालियों

में फैंक देता है वो अगर हुज॒र की मिस्ल होने का दावा करने लगें तो किस
क्‌द्र जुल्म है।

 

हिकायत बकरी जिन्दा हो गई

 

जंगे अहंजाब में हजरत जाबिर रज़ी अल्लाहो अन्ह ने हुजर सरवरे आलम
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की दअवत की और एक बकरी

जब्ह की, हुजर॑ जब सहाबाऐ इक्राम की मईयत में जाबिर के घर पहुँचे तो
जाबिर ने खाना लाकर आगे रखा, खाना थोड़ा था और खाने वाले ज़्यादा
थे, हुजूर ने फ्रमाया थोड़े थोड़े आदमी आते जाओ और बारी बारी खाना
खाते जाओ, चुनाँचे ऐसा ही हुआ के जितने आदमी खाना खा लेते वो
निकल जाते, उसी तरह सब ने खाना खा लिया, जाबिर फ्रमाते हैं के हुजर
ने पहले ही फरमा दिया था के कोई शख्स गोश्त की हड्डी ना तोड़े, ना फैंक,
सब एक जगह रखते जाएँ जब सब खा चुके तो आपने हुक्म दिया के छोटी
मोटी सब हंड़ियाँ जमा कर दो, जमा हो गईं तो आपने अपना दस्त मुबारक
उन पर रख कर कुछ पढ़ा आपका दस्ते मुबारक अभी हड्डियों के ऊपर ही
था और जूबाने मुबारक से आप कुछ पढ़ ही रहे थे के वो हड्डियाँ कुछ का
कुछ बनने लगीं, यहाँ तक के गोश्त पोस्त तैयार होकर कान झाड़ती हुई वो
बकरी उठ खड़ी हुई, हुज॒र ने फ्रमाया: “जाबिर! ले ये अपनी बकरी ले
जा।” ( दलायल-उल-नबुव्वत सफा 224 जिल्द 2)

सबक :- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम मुनब्बओ
अल-हयात और हयात बरुश हैं, आपने मुर्दा दिलों और मुर्दा जिस्मों को भी
जिन्दा फरमा दिया फिर जो लोग ( मआज अल्लाह ) हुजर को “मर कर
मिट्टी में मिलने वाला” कहते हैं किस क॒द्र जाहिल और बेदीन हैं।

हिकायत नम्बर (३ साँप का अण्डा

एक सहाबी हजरत हबीब अल्लाह बिन फिदयक रजी अल्लाहो अन्ह
कहीं जा रहे थे के उनका पाँऊ इत्तेफाकन एक जहरीले साँप के अण्डे पर
पड़ गया और वो पिस गिया और उसके जुहर के असर से हजरत हबीब बिन
फिदयक रजी अल्लाहो अन्ह की आँखें बिलकुल सफेद हो गईं और नजर
जाती रही, ये हाल देखकर उनके वालिद बहुत परेशान हुए और उन्हें लेकर
हुजर सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सलल्‍लम की खिदमत
में पहुँचे, हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने सारा किस्सा
सुनकर अपना थूक मुबारक उनकी आँखों में डाला तो हजरत हबीब बिन
फिदयक की अंधी आँखें फौरन रोशन हो गईं और उन्हें नजर आने लगा।
रावी का बयान है के मैंने खुद हजरत फिद्यक को देखा उस वक़्त उनकी
उम्र अस्सी(80) साल की थी और आँखें तो उनकी बिलकुल सफेद थीं मगर
हुज॒र को थूक मुबारक के असर से नजर इतनी तेज थी के सूई में धागा डाल
लेते थे। ( दलायल-उल-नब॒व्बत सफा ॥67) |

 

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की
मिस्ल बनने वालों के लिए मुकाम गौर है के हुज॒र वो हैं जिनकी थूक मुबारक
से अंधी आँखों में बीनाई और नूर पैदा हो जाए और वो वो हैं के उनकी थूक
के मुतअल्लिक्‌ रेल गाड़ियों में ये लिखा होता है के “थूकों मत। इससे बीमारी
फैलती है।” फिर मर्ज व शिफा दोनों बराबर कैसे हो सकती हैं?

हिकायत नम्बर (5) हजरत जाबिर का मकान और

एक हजार मेहमान

हजरत जाबिर रज़ी अल्लाहो अन्ह ने जंगे खुन्दक के दिनों हुजूर
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम शिकम अनवर पर पत्थर बंधा देखा
तो घर आकर अपनी बीवी से कहा के क्या घर में कुछ है ताके हम हुजर
सल-लल्लाहों तआला अलेह व सल्‍लम के लिए कुछ पकाएँ और हुजूर
खिलाएँ? बीबी ने कहा, थोड़े से जौ हैं और ये एक बकरी का छोटा बच्चा
है इसे जब्ह कर लेते हैं आप हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम को बुला
लाईये मगर चूंके वहाँ लश्कर बहुत ज़्यादा है इसलिए हुज॒र से पौशीदगी में
कहियेगा के वो अपने हमराह दस आदमियों से कुछ कम ही लाएँ। जाबिर
ने कहा, अच्छा तो लो मैं इस बकरी के बच्चे को जुब्ह करता हूँ तुम इसे
पकाओ और मैं हुजर को बुला लात हूँ, चुनाँचे जाबिर हुजूर की खिदमत में
पहुँचे और कान में अर्ज किया हुजर मेरे हाँ तशरीफ ले चलिये और अपने
साथ दस आदमियों से कुछ कम आदमी ले चलिये। हुज॒र॒ सल-लल्लाहो
अलेह व सल्‍लम ने सारे लश्कर को मुखातिब फ्रमा कर फरमाया चलो मेरे
साथ चलो जाबिर ने खाना पकाया है और फिर जाबिर के घर आकर हुजर
ने उस थोड़े से आटे में अपना थूक मुबारक डाल दिया और इसी तरह हंडिया
में भी अपना धूक मुबारक डाल दिया और फिर हुक्म दिया के अब रोटियाँ
और हंडिया पकाओ, चुनाँचे उस थोड़े से आटे और गोश्त में थूक मुबारक
की बर्कत से इतनी बर्कत पैदा हुई के एक हजार आदमी खाना खा गया मगर
ना कोई रोटी कम हुई और ना कोई बोटी। ( मिश्कात शरीफ सफा 524 )

सबक;:- ये हुजर के थूक मुबारक की बर्कत थी के थोड़े से खाने में
इतनी बर्कत पैदा हो गई के हजार आदमी सेर शिकम होकर खा गया लेकिन
खाना बदस्तूर वैसे का वैसा ही रहा और कम ना हुआ और ये हुजर की थूक
मुबारक है और जो उनकी मिस्‍्ल बशर बनने वाले हैं वो अगर कभी अपने

घर की हंडिया में भी थूकें तो उनकी बीवी ही वो हंडिया बाहर फैंक देगी
और कोई खाने को तैयार ना होगा, गोया उनके थूकने से थोड़े बहुत खाने

से भी जवाब। क्‍ क्‍

हिकायत कोजे में दरया

 

हुदैबिया के रोज सारे लश्कर सहाबा में पानी खृत्म हो गया हत्ता के वजु
और पीने के लिए भी पानी का कृतरा तक बाकी ना रहा। हुजूर सल-लल्लाहों
तआला अलेह व सल्‍लम के पास एक कोजृह पानी का था हुज॒र जब उस
कोजेह से वज फ्रमाने लगे तो सब लोग हुज॒र की तरफ्‌ लपके और फरयाद
की के या रसूल अल्लाह! हमारे पास तो एक कृतरा भी पानी का बाकी नहीं
रहा हम ना तो वज॒ कर सकते हैं और ना ही अपनी प्यास बुझा सकते हैं हुज॒र!
ये आप ही के कजे में पानी बाकी है हम सब के पास पानी खत्म हो गया
और हम प्यास की शिद्दत से बेचेन हैं। हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लमं ने ये बात सुनकर अपना हाथ मुबारक उस कोजे में डाल दिया लोगों
ने देखा के हुज॒र के हाथ मुबारक की पाँचों उंगलियों से पानी के पाँच चश्मे
जारी हो गए और सब लोग उन चश्मों से सैराब होने लगे और हर शख्स ने
जी भर के पानी पिया और प्यास बुझाई सब ने बज भी कर लिया हजरत
जाबिर से पूछा गया के लश्कर की तअदाद कितनी थी? तो फरमाया उस
वक्त अगर एक लाख आदमी भी होते तो वो पानी सब के लिए काफी था
मगर हम उस वक्त पन्द्रह सौ की तअदाद में थे। मिश्कात शरीफ सफा 524)

सबक्‌:- हमारे हुज॒र॒ को अल्लाह ने ये इख़्तियार व तसरूफ फरमाया
है के आप थोड़ी चीज को ज़्यादा कर देते हैं “ना” से हाँ और मअदूम से
मौजूद करना अल्लाह का काम है और थोड़े से ज़्यादा कर देना मसतफा का
काम है और ये अल्लाह ही की अता है।

 

 

हिकायत एक सहराई काफ्ला

अरब के एक सहरा में एक बहुत बड़ा काफ्ला राह पैमा था के अचानक
>प काएुला का पानी ख़त्म हो गया उस काफ्ला में छोटे बड़े बूढ़े जवान
और मर्द औरतें सभी थे प्यास के मारे सब का बुरा हाल था और दूर तक
पानी का निशान तक ना था और पानी उनके पास एक कतरा तक बाकी ना

रहा था ये आलम देखकर मौत उनके सामने रक्स करने लगी मगर उन पर
ये खास करम हुआ के द

नायगहानी आँ मग्रीस हरा दोकौन
मुसतफा पैदा ,शुदह अज बहरे औन
यानी अचानक दो जहाँ के फरयादरस मोहम्मद मुसतफा सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम उनकी मदद फ्रमाने वहाँ पहुँच गए हुज्‌र को देख
कर सबकी जान में जान आ गई और सब हुजर के गिर्द जमा हो गए। हुजर
ने उन्हें तसल्‍ली दी और फरमाया के वो सामने जो टीला है उसके पीछे एक
सियाह रंग हबशी गृूलाम ऊंटनी पर सवार हुए जा रहा है उसके पास पानी
का एक मशकीजह है उसको ऊंटनी समेत मेरे पास ले आओ चुनाँचे कुछ
आदमी टीले के उस पार गए तो देखा के बाकुई एक ऊंटनी पर सवार हबशी
जा रहा है वो उस हबशी को ह॒जर के पास ले आए। हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम ने उस हंबशी से मशकीजुह ले लिया और अपना
दस्ते रहमत उस मशकीजडहे पर फैर कर उसका मुंह खोल दिया और फ्रमाया,
आओ अब जिस क॒द्र भी प्यासे हो आते जाओ और पानी पी पी कर अपनी
प्यास बुझाते जाओ चुनाँचे सारे काफ्ले ने उस एक मशकीजूहे से जारी
चश्माऐ रहमत से पानी पीना शुरू किया और फिर सब ने अपने अपने बर्तन
भी भर लिए, सब के सब सैराब हो गए और सब बर्तन भी पुर आब हो गए,
हुजूर का ये मौजजा देखकर वो हबशी बड़ा हैरान हुआ और हुजर के दस्ते
अनवर चूमने लगा हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ने अपना
दस्ते अनवर उसके मुंह पर फैरा तो
शुद . सपदाँ रंगी जावहऐे.. हबश
हमचू.. बदरूरोज़े रोशन शुद _शबश्ञ
उस हबशी का सियाह रंग काफूर हो गया और वो सफेद पुरनूर हो गया
फिर उस हबशी ने कलमा पढ़ कर अपना दिल भी मुनव्वर कर लिया और
मुसलमान होकर जब वो अपने मालिक के पास पहुँचा तो मालिक ने पूछा
तुम कौन हो? वो बोला तुम्हारा गुलाम हूँ, मालिक ने कहा तुम गुलत कहते
हो, वो तो बड़ा सियाह रंग का था वो बोला ये ठीक है मगर मैं उस मुनब्बओ
नूर जाते बाबर्कात से मिल कर और उस पर ईमान लाकर आया हूँ जिसने
सारी कायनात को मुनव्वर फ्रमा दिया है मालिक ने सारा किस्सा सुना तो
वो भी ईमान ले आया। ( मसनवी शरीफ ) | ु
सबक :- हमारे हुजुर बइज्न अल्लाह दो जहान के फ्रयादरस हैं और
मुसीबत के वक्त मदद फ्रेमाने वाले हैं फिर अगर कोई शख्स यूं कहे के
हुजूर किसी की मदद नहीं फरमा सकते और किसी की फ्रयाद नहीं सुनते तो

वो किस क॒ंद्र जाहिल व बेखबर है पस अपना अकीदह ये रखना चाहिए

फरयादअम्ती जो करे हाले, जार में
मुमकिन नहीँ के खैर बशर को ख़बर ना हो

 

 

हिकायत  बादलों पर हकूमत

 

मदीना मुनव्वरह में एक मर्तबा बारिश नहीं हुईं थी कहेत का सा आल|
था और लोग बड़े परेशान थे एक जुमओ के रोज हुजर॒ सल-लल्लाहो ४
अलेह व सल्‍लम जब के वाज फरमा रहे थे एक आराबी उठा और
करने लगा या रसूल अल्लाह! माल हलाक हो गया और औलाद फाक्‌
करने लगी दुआ फरमाईये बारिश हो। हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह १
सल्लम ने उसी वक्त अपने प्यारे प्यारे न्रानी हाथ उठाए रावी का बयान है
आसमान बिलकुल साफ था अब्र का नाम व निशान तक ना था मगर मर्द
सरकार के हाथ मुबारक उठे ही थे के पहाड़ों की मार्निंद अन्न छा गए औ
छाते ही मिनह बरसने लगा, हुजर मिंबर पर ही तशरीफ्‌ फरमा थे के मिन ।
शुरू हो गया, इतना बरसा के छत टपकने लगी और हुज्‌र की रैश अनव
से पानी के कतरे गिरते हमने देखे फिर ये मिनह बन्द नहीं हुआ बल्के हफ्े
को बरसता रहा फिर अगले दिन भी और फिर उससे अगले दिन भी हत्त
के लगातार अगले जुमओ तक बरसता ही रहा और हुजर जब दूसरे द
का वाज फरमाने उठे तो वही आराबी जिसने पहले जुमओ में वारिश ना
की तकलीफ अर्ज की थी उठा और अर्ज करने लगा या रसूल अल्लाह!
तो माल ग॒र्कु होने लगा और मकान गिरने लगे अब फिर हाथ उठाईये के
बारिश बन्द भी हो। चुनाँचे हुजर ने फिर उसी वक्‍त अपने प्यारे प्यारे
हाथ उठाए और अपनी उंगली मुबारक से इशारा फ्रमा कर दुआ ह
के ऐ अल्लाह! हमारे इर्दगिर्द बारिश हो, हम पर ना हो, हुजर का ये शा
करना ही था के जिस जिस तरफ्‌ हुज॒र की उंगली गई उस तरफ से
फटता गया और मदीना मुनव्वरह के ऊपर ऊपर सब आसमान साफ्‌ हो गया
( मिश्कात शरीफ सफा 528 )

सबकः:- सहाबाइक्राम मुश्किल के वक्त हुज॒र ही की बारगाह मे
फरयांद लेकर आते थे और उनका यकीन था के हर मुश्किल यहीं हल होती
और वाकई वहीं हल होती रही है इसी तरह आज भी हम हुज॒र ही के मोहला
हैं और बगैर हुजर के वसीले के हम अल्लाह से कुछ भी नहीं पा सकते ऑ'
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की हकमत बादलों पर भी जारी है|

हिकायत चांद पर हकूमत

हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम के दुश्मनों ने बिलखसूस
अबु जहल ने एक मर्तबा हुजर से कहा के अगर तुम खुदा के रसूल हो तो
आसमान पर जो चाँद है उसके दो टुकड़े करके दिखाओ। हुजर ने फ्रमाया
लो ये भी करके दिखा देता हूँ चुनाँचे आपने चाँद की तरफ अपनी उंगली
मुबारक से इशारा फ्रमाया तो चाँद के दो टुकड़े हो गए, ये देख कर अबु
जहल हैरान हो गया मगर बे ईमान माना भी नहीं और हुजूर को जादूगर ही
कहता रहा। ( हुज्जतु-उललाह सफा 35% और बुखारी शरीफ सफा 27 जुजू 2)

सबक्‌:- हमारे हुज॒र की हकूमत चाँद पर भी जारी है और बावजूद
इतने बड़े इख्तियार के बे ईमान अफ्राद हुजर के इख़्तियार व तसर्रूफ्‌ को
फिर भी नहीं मानते। ः

हिकायत नम्बर (0) सूरज पर हकूमत

एक रोज मुकामे सेहबा में हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम
ने नमाज जौहर अदा की और फिर हजरते अली रजी अल्लाहो अन्ह को
किसी काम के लिए रवाना फ्रमाया हजुरते अली रजी अल्लाहो अन्ह के
वापस आने तक हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने नमाज अस्र
भी अदा फरमा ली और जब हजूरते अली वापस आए तो उनकी आगोुश में
अपना सर रख कर 6हुज॒र सो गए हजरते अली ने अभी तक नमाजु अख्तर अदा
ना की थी इधर सूरज को देखा तो गरूब होने वाला था। हजरत अली-सोचने
लगे के इधर रसूले खुदा आराम फ्रमा हैं और इधर नमाजे खुदा का वक्त
हो रहा है, रसूले खुदा की इसतराहत का खयाल रखूं तो नमाज जाती है और
नमाज का खयाल करूं तो रसूले खुदा की इसतराहत में खुलल वाकओ होता
है। करूं तो क्या करूं? आखिर मौला अली शेरे खुदा रजी अल्लाहो अन्ह ने
फैसला किया के नमाज को कूजा होने दो मगर हुजर की नींद मुठारक में
खलल ना आए चुनाँचे सूरज डूब गया और असर का वक़्त जाता रहा, हुजुर
उठे तो हजरत अली को मगृमूम देखकर वनह दरयाफ्त की तो हजरत अली
ने अर्ज किया या रसूल अल्लाह! मैंने आपकी इसतराहत के पेशे नजुर अभी
तक नमाज अग्र नहीं पढ़ी और सूरज गृरूब हो गया है हुज॒र ने फ्रमाया तो
गम किस बात का, लो अभी सूरज वापस आता है और फिर उसी मुकाम
पर आकर रूकता है जहाँ वक्ते अस्र होता है चुनाँचे हुजर ने दुआ फ्रमाई

9९९6 99 (थ्वा5८शााश'

सच्ची हिकायात 44 हिस्सा अव्वल
तो गरूब शुदा सूरत फिर निकला और उल्टे कृदम उसी जगह आकर ठहर
गया जहाँ अस्र के वक्त होता है हजरते अली ने उठकर अस्र की नमाज पढ़ी
तो सूरज गृरूब हो गया। ( हुज्जत-उलअली-अलआलमीन सफा 39 )

: सबकः हमारे हुज॒र की हकूमत सूरज पर भी जारी है और आप
कायनात के हर जरें के हाकिम व मुख्तार हैं आप जैसा ना कोई हुआ ना
होगा ना हो सकता है। द

हिकायत नम्बर 2) जमीन पर हकूमत

हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ने हजरत सिद्दीक्‌ अकबर
रजी अल्लाहो अन्ह की मईयत में जब मक्का से हिज़त फ्रमाई तो क्रैशे
मक्का ने एलान किया के जो कोई मोहम्मद ( सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सलल्‍लम ) और उसके साथी ( सिद्देके अकबर रजीअल्लाहो अन्ह ) को
गिरफ्तार करके लाएगा उसे सौ ऊँट इनाम में दिए जाएँगे, सर्राका बिन
जअशिम ने ये एलान सुना तो अपना तेज रफ़्तार घोड़ा निकाला और उस पर
बैठ क़र कहने लगा के मेरा ये तेज रफ़्तार घोड़ा मोहम्मद और अबु बक्र का
पीछा कर लेगा और मैं अभी उन दोनों को पकड़ कर लाता हूँ चुनाँचे उनसे
अपने घोड़े को दौड़ाया और थोड़ी देर में हुज॒र॒ के करीब पहुँच गया। सिद्दीके
अकबर ने जब देखा के सर्राका घोड़े पर सवार हमारे पीछे आ रहा है और हम
तक पहुँचने ही वाला है तो अर्ज किया या रसूल अल्लाह! सर्राका ने हमें देख
लिया है और वो देखिए हमारे पीछे आ रहा है। हुज॒र ने फरमाया ऐ सिद्दीक
कोई फिक्र ना करो अल्लाह हमारे साथ है, इतने में सर्राकु बिलकुल क्रीब
आ पहुँचा तो हुज॒र ने दुआ फरमाई तो जमीन ने फौरन सर्राका के घोड़े को
पकड़ लिया और उसके चारों पैर पेट तक जूमीन में धंस गए, सर्राक्ा ये
मंजर देख कर घबराया और अर्ज करने लगा।

“या मोहम्मद! मुझे और मेरे घोड़े को इस मुसीबत से निजात दिलाईये में
आप से वादा करता हूँ के मैं पीछे मुड़ जाऊँगा और जो कोई आपका पीछा
करता हुआ आपकी तलाश में इधर आ रहा होगा उसे भी वापस ले जाऊँगा
और आप तक ना आने दूंगा चुनाँचे हुजूर के हुक्म से जमीन ने उसे छोड़ दिया।”

सबक ः हमारे हुज॒र का हुक्मो फ्रमान जूमीन पर भी जारी है और
कायनात की हर चीज अल्लाह ने हुज॒र के ताबओ कर दी है फिर जिस शख्स
की अपनी बीवी भी उसकी ताबओ ना हो वो अगर हुजूर की मिस्ल बनने लगे
तो वो किस-क्‌द्र अहमद; व बेवक॒फ है। 9

9९९06 099 (थ्वा5८शाशश'

हि लि हिस्सा अव्य
दरख्तों अव्वल
हि कब दल पर हकूमत
मर्तबा ल-लल्लाहो
;द! अगर आप अल्लाह के रसूल हैं अलेह व सल्‍लम से कहा

तो कोई निशानी दिखलाईये
है जे फ्रमाया अच्छा लो देखा। वो जो सामने दरस्त खड़ा है उसे जाकर

हुज्र ० तुम्हें
०» कह दो के तुम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है चुनाँचे
38 के पास गया और उससे कहा, तुम्हे अल्लाह का 44 608
दा ये बात सुन कर अपने आगे पीछे और दायें बायें गिरा और अपनी
जड़ें जमीन से उखाड़ कर जमीन पर चलने लगा और चलते हुए हुजर की
द्वमत में हाजिर हो गया और अर्ज करने लगा, “अस्सलाम अलेकुप या
रसूल 2288 अल्लाह! आराबी हुजूर से कहने लगा अब इसे हुक्म दीजिए के ये फिर
अपनी जगह पर चला जाए चुनाँचे हुज॒र ने उसे फ्रमाया के जाओ वापस
चले जाओ, वो दरख़्त ये सुनकर पीछे मुड़ गया और अपनी जगह जाकर
फिर कायम हो गया। |
आराबी ये मौजजा देख कर मुसलमान हो गया और हुज॒र को सज्दा
करने की इजाजूत चाही हुजर ने फरमाया सज्दा करना जायज नहीं फिर
उसने हुजर के हाथ पैर मुबारक चूमने की इजाजत चाही तो हुज॒र ने फरमाया
हाँ ये बात जायज है और उसने हुजर के हाथ और पैर मुबारक चूम लिए।
(हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन सफा 44)
सबक्‌:- हमारे हुजर का हुक्म दरख़्तों पर भी जारी है और यें भी
मालूम हुआ के बुजुर्गों के हाथ पैर चूमने जायज हैं हुजर॒ सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम ने उससे मना नहीं फरमाया।

हिकायत नम्बर (3 दीवाना ऊंट :

बनी निजार के एक बाग में एक दीवाना ऊँठ घुस आया जो शख्स भी
उस बाग में जाता वो ऊँट उसे काटने दौड़ता था लोग बड़े परेशान थे और
हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की खिदमत में हाजिर हुए
और सारा किस्सा अर्ज किया हुज॒र ने फरमाया, चलो मैं चलता हूँ चुनाँचे
हुजर उस बाग में तशरीफ्‌ ले गए और उस ऊँट से फ्रमाया, इधर आओ उस
ऊंट ने जब रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम का हुक्म
सुना तो दौड़ता हुआ हाजिर हुआ और अपना सर हुज॒र के कदमों में डाल
दिया हुजूर ने फ्रमाया इसकी नकेल लाओ, नकेल लाई गई और हुजूर ने

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

सच्ची

सच्ची हिकायात 46 हिस्सा अव्वल
उसे नकेल डाल कर उसके मालिक के हवाले कर दिया और वो आराम से
चला गया, हुज॒र ने फिर सहाबा से फ्रमाया, काफिरों के सिवा मुझे जमीन
व आसमान वाले सब जानते हैं मैं अल्लाह का रसूल हूँ। ( हुज्जत-उल्लाह
अली अलआलमीन सफा 58 )
सबक्‌:- हमारे हुज॒र का हुक्म जानवरों पर भी जारी है और कायनात
की हर शे बजुज काफिरों के हमारे हुज॒र की रिसालत व सदाकत को जानती है

हिकायत नम्बर 24) बैत-उल्लाह की कुंजी

हिज्जत से पहले बैत-उल्लाह की कुंजी करैशे मक्का के कब्जे में थी और
ये कुंजी उस्मान बिन तलहा के पास रहा करती थी, ये लोग बैत-उल्लाह को
पीर और जुमओरात के रोज खोला करते थे, एक दिन हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्लम तशरीफ्‌ लाए और उस्मान बिन तलहा से दरवाजा
खोलने को फरमाया तो उस्मान ने दरवाजा खोलने से इंकार कर दिया, हुजर
ने फरमाया ऐ उस्मान! आज तो तू ये दरवाजा खोलने से इंकार कर रहा है
और एक दिन ऐसा भी आएगा के बैत-उल्लाह की ये कुंजी मेरे कब्जे में होगी
और मैं जिसे चाहूंगा ये कुंजी दूंगा, उस्मान ने कहा तो क्या उस दिन कौमे
करैश हलाक हो चुकी होगी? देखा जाएगा, फिर हिज़त के बाद जब मक्का
फतह हुआ और हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम सहाबा के
कहुसी लश्कर समेत मक्का में फातेहाना दाखिल हुए तो सबसे पहले कअबा
शरीफ में तशरीफ लाए और उस्ती कलीद बरदार उस्मान से कहा, लाओ वो
कुंजी मेरे हवाले कर दो, नाचार उस्मान को वो कुंजी देनी पड़ी , हुजूर ने वो
कूंजी लेकर उस्मान को मुखातिब फ्रमा कर फ्रमाया, उस्मान! लो, कलीद
बरदार मैं भी तुझी को मुक्र॑र करता हूँ तुम से कोई जालिम ही ये कुंजी लेगा।
उस्मान ने दोबारा कुंजी ली तो हुज॒र ने फ्रमाया उस्मान! वो दिन याद
है जब मैंने तुम से कुंजी तलब की थी और तुम ने दरवाजा खोलने से इंकार
कर दिया था और मैं ने कहा था के एक दिन ऐसा भी आएगा के ये कुंजी मेरे
कब्जे में होगी और मैं जिसे चाहूंगा दूंगा, उस्मान ने कहा हाँ हुजूर! मुझे याद
है और मैं गवाही देता हँँ के आप अल्लाह के सच्चे रसूल हैं। ( हुज्जत-उल्लाह
अलआलमीन 499)
. सबक॒ः- हमारे हुजर अगली पिछली सब बातों के आलिम हैं और
कृयामत तक जो कुछ भी होने वाला है सब आप पर रोशन है खुदा ने
आपको इल्मे गैब अता फरमाया है और आप दानाऐ गूयूब व आलमे माकान

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

सच्बी हैं फिर अगर कोई कह ह हिस्सा अव्वल
ह | शख्स
# आज वो किस क॒द्र जाहिल न कहनूर को 3 को बात का

हिकायत नम्बर ७) गुमशुदा ऊँटनी
जंगे तबूक में हुजूर सरवरे आलम सल-लल्लाहो
लम की ऊँटनी गुम हो गई तो एक मुनाफिक ने मुसलमानों से के
हुुहारा मोहम्मद हर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ) तो नबी होने का
पुर है और तुम्हें आसमान को बातें सुनाता है फिर उसे अपनी ऊँटनी का पता
क्यों नहीं चलता के वो कहा है? हुज्र ने जब मुनाफिक की ये बात सुनी तो
बेशक मैं नबी.हूं और मेरा इल्म अल्लाह ही का अता फ्रमूदा है लो
सुनो । मेरी ऊँटनी फलों जगह खड़ी है एक दरख़्त ने उसकी नकेल को रोक
रखा है जाओ वहाँ से उस ऊंटनी को ले आओ, चुनाँचे सहाबाइक्राम गए तो
बाकुई ऊँटनी उसी जगह खड़ी थी और उसकी नकेल दरख़्त से अटकी हुई
थी। ( जाद-उल-मआद सफूा 3 जिल्द 3 हुज्जत-उल्लाह अली अलआलप्रीन
सफा 5॥00 )
सबकः- हमारे हुज्‌र को अल्लाह ने इस कृद्र इल्मे गैब अता फरमाया
है के कोई बात आप से छुपी हुईं नहीं मगर मुनाफिक्‌ इस इल्मे गैब के
मोअतरिफ नहीं।

हिकायत नम्बर७७ केदी चचा

जंगे बद्र में जब अल्लाह ने मुसलमानों को फ्तह और कुफ्फार को
शिकस्त दी तो मुसलमानों के हाथ जो केदी आए उनमें हुज॒र॒ सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सललम के चचा हजरते अब्बास भी थे कैदियों से जब
तावान तलब किया गया तो हजूरत अब्बास कहने लगे ऐ मोहम्मद! मैं तो एक
ग्रीब आदमी हूँ मेरे पास कया है मक्का में जब आपने मुझे छोड़ा था तो में
तमाम कबीले के अफ्राद से गूरीब था हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम ने फरमाया और अब जब के आपने अपने घर से फौज कुफ्फार के
साथ जंगे बद्र में आना चाहा तो आप अपनी बीवी उम्मे फज्ल को पौशीदगी
में चन्द सोने की ईंटें देकर आए थे चचा जान! ये राजु आप क्‍यों छुपा रहे
हैं, हजरते अब्बास ये गैब की बात सुन कर हैरान रह गए और बकौले शायर

जनाबे हजरत अब्बास: पह रओेशा हुआ वारी

के पैगम्बर तो रखता है दिलों की भी ख़ूबरदारी

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

सच्ची हिकायात ... 48 हिस्सा अव्यह
. खयाल आया मुसलमाँ नेक व॑ बद पहचान जाते हैं

मोहम्मद आदमी के बिल की बातें जान जाते हैं
हुज॒र की ये इत्तिला अली अलगैब का मौजजा देखकर हजरत अब्बास
ईमान ले आए।
नल व शक सफा 77 जिल्द 2) |
सबक ;- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम से को
बात मख्फी नहीं अल्लाह ने हर चीज का हुजूर को इल्म दे दिया है और
इल्मे गैब भी हुजूर का एक मौजजा है जिस पर हर मुसलमान का ईमान है|

हिकायत नम्बर 7) कबूतर के बच्चे

एक आराबी अपनी आसतीन में कुछ छुपाए हुए हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम की खिदमत में हाजिर हुआ और कहने लगा
मोहम्मद! ( मोहम्मद सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम ) अगर तू बता
दे के मेरी आसतीन के अन्दर क्‍या है तो मान लूंगा के वाकई तू सच्चा नबी
है। हुजर ने फ्रमाया वाकई ईमान ले आओगे? उसने कहा हाँ वाकई ईमान
ले आरऊँगा, फरमाया तो सुनो! तुम एक जंगल से गुजूर रहे थे तो तुम न एक
दरख्त देखा जिस पर कबूतर का एक घोंसला था उस घोंसले में कबूतर के
दो बच्चे थे तुम ने उन दोनों बच्चों को पकड़ लिया उन बच्चों की माँ ने जब
देखा तो वो माँ अपने बच्चों पर गिरी तो तुम ने उसे भी पकड़ लिया और वो
दोनों बच्चे और उनकी माँ इस वक्त भी तुम्हारे पास हैं और इस आसतीन
के अन्दर हैं। |

आराबी ये सुनकर हैरान रह गया और झट पुकार उठा: अशहद-अक-ला
इलाहा इल-लल्लाह व अश़हद अन्नका रसूल अल्लाह ( जामओ
अलमौजजात सफा 2 )

सबक्‌:ः- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम से
कोई चीज पनेहाँ ना थी और एक आराबी भी उस हकीकत जानता था के
जो नबी हो वो गैब जान. लेता है फिर बराए नाम पढ़ा लिखा होकर हुजर
के इल्म को तसलीम ना करे वो उजंड और गंवार से भी ज़्यादा उजद
गंवार हुआ या नहीं? | |

हिकायत नम्बर ७७ जन्नत की उँटनी

हजरत मौला अली रजी अल्लाहो अन्ह एक बार घर तशरीफ लाए त़ो

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश'

(मत फातिया ही अल अहम कह बन थे भूत लात है आप

बाजार ले ) को रोटी खिलाऊँ, हजरत अली व 2855

बाजार ले गएं
उसे छः रुपये पर बेच दिया, फिर उन रुपयों का कुछ खरीदना चाहते

सायल ने सदा को मठुक्रिज-उल्लाहा क्रज़न हजरत
थे की ने वो रुपये उस सायल को दे दिए थोड़ी देर के बात
आया जिंसके पास बड़ी फरबा एक ऊँटनी थी वो बोला ऐ अली! ये ऊँटनी
बरीदोगे? फ्रमाया पैसे पास नहीं, आराबी ने फ्रमाया उधार देता हूँ ये कह
क्र ऊँटनी की मिहार हजरत अली के हाथ में दे दी और खुद चला गया
इतने में एक दूसरा आराबी नमूदार हुआ और कहा अली! उँटनी देते हो?
ले लो आराबी ने कहा तीन सौ नकद देता हूँ ये कहा और तीन
सौ नकद हजरत अली को दे दिए और ऊँटनी लेकर चला गया उसके बाद
हज॒रत अली ने पहले आराबी को तलाश किया मगर वो ना मिला आप घर
आए और देखा हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम हजरत फातिमा
के पास तशरीफ्‌ फ्रमा हैं हुज्‌र ने मुसकुरा कर फ्रमाया, अली! ऊँटनी का
किस्सा तुम खुद सुनाते हो या मैं सुनाऊँ?
हजरत अली ने अर्ज किया हुजर आप ही सुनाएँ फ्रमाया पहला आराबी
जिंब्राईल था और दूसरा आराबी इसराफील था और ऊँटनी जन्नत की वो
ऊटनी थी जिस पर जन्नत में फातिमा सवार होगी खुदा को तुम्हारा ईसार
जो तुम ने छः रुपये सायल मो दिए पसंद आया और उसके सिले में दुनिया
में भी उसने तुम्हें उसका अज् ऊँटनी की खरीद व फ्रोख्त के बहाने दिया।
(जामओ अलमोजजात सफा 4) क्‍ या
सबकः;:- अल्लाह वाले खुद भूके रहकर भी मोहताजों को खाना
खिलाते हैं ये भी मालूम हुआ के हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेहं
व सलल्‍लम दानाऐ गृयूब हैं आपसे कोई बात मख्फी नहीं।

हिकायत नम्बर (9 जंगल की हिरनी
एक जंगल मैं एक हिरनी रहती थी उसके दो बच्चे थे एक बार वो बाहर
निकली तो किसी शिकारी ने राह में जाल बिछा रखा था बेखूबर हिरनी उस
जाल में फंस गई जब उसने देखा के मैं तो फंस गई हूँ तो बड़ी परेशान हुई
उसकी खुश किस्मती देखिए के उसी जंगल में हुजर सल-लल्लाहो तेआला
अलेह व सल्‍लम तशरीफ लाते हुए उसे नजर आए जब उसने हुजूर रहमते

9०९6 099 (थ्वा]58८शाशश'

सच्ची हिकायात 50... हस्सा अच्चल
आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम को देखा तो पुकारी या रसूल
अल्लाह! मुझ पर रहम फ्रमाईए हुजर ने उसकी पुकार सुनी और उसके पाप्त
तशरीफ लाकर फ्रमाया क्‍या हाजत है? वो बोली हुजूर! मैं उस आराबी
के जाल में फंस गई हूँ मेरे दो छोटे छोटे बच्चे हैं जो उस करीब के पहाड़ों
में हैं थोड़ी देर के लिए आप मेरी जमानत देकर इस जाल से मुझे आजाद
करा दीजिए ताके मैं आखिरी बार एक मर्तबा 2988 8 को दूध पिला आऊँँ,
हुज॒र मैं दूध पिलाकर फिर यहीं वापस ईरगी, हुजर ने फ्रमाया अच्छा
जा मैं तुम्हारी जूमानत देता हूँ और तुम्हारी जगह यहीं ठहरता हूँ, तो बच्चों
को दूध पिलाकर जल्दी वापस आ जाओ चुनाँचे हिरनी को आपने रिहा
कर दिया और वहाँ खुद कृयाम फ्रमा हो गए आराबी जो मुसलमान ना था
कहने लगा, अगर मेरा शिकार वापस ना आया तो अच्छा ना होगा हजर ने
फ्रमाया तुप देखो तो सही के हिरनी वापस आती है या नहीं। चुनाँचे हिरनी
बच्चों के पास पहुँची और बच्चों को दूध पिला कर फौरन वापस लौटी और
आते ही हुजूर के कदमों पर सर डाल दिया ये अजाज देखकर वो आराबी
भी कृदमों पर गिर गया
झुक गए सर हिरनी व काफिर के दोनों साथ साथ
मुसतफ्ा ने उनके सर पर रख दिया रहमत का हाथ
फिर बच्चमारत उसको और उसको मिली सरकार से
जाल से आजाद तू, और तू अज़ाबे नार से?
(शिफा शरीफ सफा 7 जिल्द 2)
सबक :- हमारे हुज॒ः॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम जानवरों
तक के लिए रहमत हैं और जानवर भी हुजूर के हुक्म की तामील करते है
फिर जो इंसान होकर हुजूर का हुक्म ना माने वो जाचवरों से भी गया गुजरा

है या नहीं?
हिकायत नम्बर ॥) एक काफिरा का मकान

हुज॒र सरवरे आलम सर्ल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम फतह
मक्का के बाद एक दिन मक्का मोअज़्जमा की एक काफिरा औरत के मकान
की दीवार से तकिया लगाकर किसी अपने गुलाम से गुफ्तगू फ्रमा रहे थे
उस माकन वाली काफिरा को जब पता चला के मोहम्मद सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सललम मेरे मकान की दीवार से तकिया लगाए खड़े हैं तो
बग्जु व अदावत से उसने अपने मकाल की सब खिड़कियाँ बन्द कर डार्ली

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश'

| |
इक की आवाज ना सुन पाए उरी चक्‍्त जिन्नाईले की न कद
कियाः स्‍ीमिज
और 8 अल्लाह! खुदा फरमाता है के अगरचे ये औरत काफिरा है
आपकी शान बड़ी अरफृअ व बुलंद है चूंके उस काफिरा के मकान की
के साथ आपकी पुश्ते अनवर लग गई है इस लिए मैं नहीं चाहता के ये
20 बाली अब जहन्नम में जले। उस औरत ने अपने मकान की खिड़कियों
बन्द किया है मगर मैंने उसके दिल की खिड़की खोल दी है और ये सिर्फ
दीवार से आपके तकिया लगा कर खड़े होने की बर्कत से है, इतने
प्रो औरत बेचैन होरक घर से निकली और हुज्र के कदमों पर “गिर गई
और सच्चे दिल से पुकार उठी। अश़हद-अनब-ला इलाहा इल-लल्लाह व
अब्नका रसूल अल्लाह ( नुजृहत-उल-मजालिस सफा 78 जिल्द 2)
सबक्‌:- जिस औरत के मकान की दीवार से हुजर की पुश्ते अनवर
लग गई वो औरत आग से बच गई तो जिस खुश किस्मत और मुक्‌हस खातून
हज॒रते आमना रजी अल्लाहो अन्हा के शिकम अनवर में हुजर ने कयाम
फरमया हो वो मुकुद्स खातून क्यों जन्नत की मालिक ना होगी फिर किस
क॒द्र बदबख़्त हैं वो लोग जो हुजर के वालदैन मोअजृमीन के मुतअल्लिक्‌
कुछे का कुछ बकते हैं। 5 ।
. “जी अल्लाहो तआला अन व अलदीयह सल-लल्लाहो अलेह
ब आलिही व सल्‍लम ”

हिकायत नम्बर 0) शीरख्वार बच्चे का.
एलाने हक

हुज॒र सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेहं.ब सल्‍लम एक मर्तबा

सहाबाइक्राम अलेहिम अर्रिज॒वान में तशरीफ फरमा थे के एक मुशरिका

औरत जिसकी गोद में दो माह का शीरख्वार बच्चा था उस तरफ्‌ से गुजरी

उस बच्चे ने हुजर॒ की तरफ नजर की तो यकदम बजुबाने फ्सीह पुकार उठा:
अस्थलाय अलेका या रसूल व या अकरमा खल्काीअल्लाह

माँ ने जब देखा के मेरा दो माह बच्चा कलाम करने लगा है तो हैरान

है गई और बोली बेटा! ये कलाम करना तुझे किस ने सिखा दिया? और

अल्लाह के रसूल हैं, ये तुझे किस ने बता दिया? बच्चा अब अपनी माँ

से मुखातिब होकर कहने लगा ऐ माँ! ये कलाम करना मुझे उसी अल्लाह ने

9९९06 099 (थ्वा5८शाशश'

' सच्ची हिकायात | हिस्सा अव्वल
सिखाया है जिसने सब इंसानों को ये ताकृत दी है और ये देख मेरे सर पर
जिब्राईले अमीन खड़े हैं जो मुझे बता रहे हैं के ये अल्लाह के रसूल हैं माँ
ने ये अजाजु देखा तो झट कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गईं, मौलाना रूमी
अलेह अर्रहमत मसनवी शरीफ में फ्रमाते हैं के फिर हुज॒र ने उस बच्चे को
मुखातिब फ्रमाया और दरयाफ्त फ्रमाया के तुम्हारा नाम क्‍या है? तो वो
बोला
अब्द ईफ्ज़ा पेश एँ यकमशत चीज,
लेक नागमम पेशे हकू अबुुल अजीज
यानी या रसूल अल्लाह! इस मुश्ते खाक माँ के नजदीक तो मेरा नाम
अब्दे ईज़्जा है लेकिन अल्लाह के नजदीक मेरा नाम अब्दुल अजीज है।
( नुजहत-उल-मजालिस सफा 78 जिल्द 2)
सबक्‌:- एक दो माह का बच्चा तो हुज॒र को जान और मान ले और
अपनी माँ को भी जन्नत में ले जाए मगर अफ्सोस उन उम्र रसीदा बदबख्तों
पर जिन्होंने हुजर को ना जाना ना माना और अपनो जहालत व गुस्ताखियों
से खुद भी डूबे और दूसरों को भी ले डूबे।

हिकायत नम्बर (2) रात का चोर

एक मर्तबा हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने हजरत
अबु हरेरा रजी अल्लाहो अन्ह को सदकाए फित्र की हिफाजृत के लिए
मुकरर फ्रमाया, हजरत अबु हरेरा रजी अल्लाहो अन्ह रात भर उस माल
की हिफाजुत फरमाते रहे , एक रात एक चोर आया और माल चुराने लगा,
हजूरते अबु हुरेरा ने उसे देख लिया और उसे पकड़ लिया और फ्रमाया
मैं तुझे हुजअ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम की खिदमत में पेश
करूंगा उस चोर ने मिन्नत समाजत करना शुरू की और कहा खुदारा मुझे
छोड़ दो मैं साहिबे अयाल हूँ और मोहताज हूँ, अबु हुरेरह को रहम आ गया
और उसे छोड़ दिया। सुबह अबु हुरेरह जब बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए
तो हुजर ने मुसकुरा कर फ्रमाया अबु हुरेरह! वो रात वाले तुमहारे कैदी
(चोर ) ने क्या किया? अबु हरेरह ने अर्ज किया, हुज॒र! उसने अपनी अयाल
दारी और मोहताजी बयान की तो मुझे रहम आ गया और मैंने छोड़ दिया
हुजर ने फरमाय( उसने तुम से झूट बोला, खुबरदार रहना आज रात वो फिर
आएगा। अबु हरेरह कहते हैं के मैं दूसरी रात भी उसके इन्तिजार में रहा
क्या देखता हूँ के वो वाकई फिर आ पहुँचा और माल चुराने लगा मैंने फिर

9०९06 099 (थ्वा]5८शाशश'

| >>
| हिस्सा
(नमी दि लिया उसने फिर मिन्नत खुशामद की और मुझे फिर संस
सै और मैंने फिर छोड़ दिया सुबह जब हुज॒र की बारगाह में हाजिर
गया आकर अबु हुरेरह! वो रात वाले २5 कमा
ने फिर फ्रमाग, 7 है है! वो रात वाले कैदी (चोर) ने क्या
के फिर अर्ज किया के हुजूर! वो अपनी हाजत बयान करने लगा
सा रहम आ गया और मैंने फिर छोड़ दिया, हुज॒र ने फरमाया उसने तुप
वेट कहा खबरदार! आज वो फिर आएगा अबु हरेरह कहते हैं के तीसरी
ते फिर आया : 0२ मैंने उसे पकड़ कर कहा कमबझ्त आज ना छोडंगा
हर हुजुर के पास हा ले जाऊँगा। वो बोला, अबु हरेरह! मैं तुझे चन्द
२8६ सिखा जाता हू जिनको पढ़ने से तू नफा में रहेगा, सुनो । जब
लगो तो आयत-अलकरुर्सा' पढ़ कर सोया करों; इससे अल्लाह तआला
तुह्री हिफाजत फ्रमाएगा और शैतान तुम्हारे नजदीक नहीं आ सकेगा,
अबु हरेरह कहते हैं वो मुझे ये कलमात सिखा कर फिर मुझ से रिहाई पा
गया और मैंने जब सुबह हुजूरं की बारगाह में ये सारा किस्सा बयान किया
वो हज॒र ने फ्रमाया उसने ये बात सच्ची कही है हालाँके खुद वो बड़ा झूटा
है क्या तू जानता है ऐ, अबु हुरेरह! के वो तीन रात आने वाला कौन था?
मैंने अर्ज किया नहीं या रसूल अल्लाह! में नहीं जानता, फ्रमाया वो शैतान
था। ( मिश्कात शरीफ सफा 47 )
सबक्‌ः- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सललम गुज्रे
हुए और होने वाले सब वाकेयात को जानते हैं अबु हुरेरह के पास रात को
चोर आया तो हुजर ने खुद ही फ्रमाया के अबु हुरेरह रात के कैदी ने क्या
किया और फिर ये भी फरमाया के आज फिर आएगा चुनाँचे वही कुछ हुआ
जो हुजुर ने फ्रमाया। मालूम हुआ के हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सललम आलिम माकाना वमा यक्‌न हैं।

हिकायत नम्बर ७) भेड़िये की गवाही

:.. मदीना मुनव्वरा के किसी मुक्काम पर एक चरवाहा अपनी बंकरियों
चरा रहा था के अचानक एक भेड़िया आया। और बकरियों के रेवड़ में घुस
कर एक बकरी का शिकार ले भागा चरवाहे ने देखा तो उस भेड़िये का
/भावृकूब किया और उससे बकरी छुड़ा ली भेड़िये ने जब देखा के मेरा
शिकार मुझ से छील लिया गया है तो एक टीले पर चढ़ कर बजूबान फ्सीह
क्षे लेगा, मियाँ चरवाहे! अल्लाह ने मुझे रिज़्कु दिया था मगर अफ्सोंस!

ऐुम ने मुझ से छीन लिया, चरवाहे ने जब एक भेड़िये को कलाम करते

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

च्ची हिकायांत 54 हिस्सा
देखा तो हैरान होकर बोला तआज्जुब है के एक भेड़िया भी कमान
है, भेड़िये ने फिर कलाम किया और कहा और उससे से भी ज़्यादा
वली बात तो ये है के मदीना शरीफ में एक ऐसा वजूद मौजूद है जो तुम्हें जो
कुछ हो चुका है और जो कुछ आईदा होने वाला है उन सब अगली पिछली
बातों की खबर देता है मगर तुम उस पर ईमान नहीं लाते चरवाहा जो
था भेडिये की उस गवाही को सुन कर बड़ा मुतास्छिरि हुआ और बारगाहे
रिसालत में हाजिर होकर मुसलमान हो गया। ( मिश्कात शरीफ सफा 533)
सबक :- एक जानवर भी जानता और मानता है के हुज॒र सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम हर गुजरी हुई और होने वाली बात को जानते हैं मगर
एक बराए नाम इंसान भी हैं जो ( मआजू अल्लाह ) हजूर के लिए दीवार के
पीछे का इल्म भी तसलीम नहीं करते।

हिकायत नम्बर ७) खुश अकोदा यअफूर

फतह खैबर के बाद हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम
वापस आ रहे थे के रास्ते में आपकी खिदमत में एक गधा हाजिर हुआ और
अर्ज करने लगा।

हुज॒र! मेरी अर्ज भी सुनते जाईये। हुज॒र रहमते आलम सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सलल्‍लम उस मिसकीन जानवर की अर्ज सुनने को ठहर
गए और फ्रमाया बताओ क्‍या कहना चाहते हो, वो बोला, हुजूर मेरा नाम
यजीद बिन शहाब है और मेरे दादा की नस्ल से खुदा ने साठ खुर पैदा किए
हैं उन सब पर अल्लाह के नबी सवार होते रहे और हुजूर! मेरे दिल की ये
तमन्ना है के मुझ मिसकीन पर हुजर सवारी फ्रमाएँ और या रसूल अल्लाहः
मैं उस बात का मुसतहिक्‌ हूँ. और वो इस तरह के मेरे दादा की औलाद में
से सिवा मेरे कोई बाकी नहीं रहा और अल्लाह के रसूलों में से सिवा आपके
कोई बाकी नहीं रहा। हर

हुज॒र ने उसकी ये ख़्वाहिश सुन कर फ्रमाया अच्छा हम तुम्हें अपनी
सवारी के लिए मंजर फ्रमाते हैं और तुम्हारा नाम बदल कर हम यअफू
रखते हैं ( हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन सफा 460 )

सबक्‌:- हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम की खेल
नबुव्वत का इक्रार एक गधा भी कर रहा है फिर जो खृत्म नबुव्वत का इंकार
करे वो क्‍यों ना गश्े से भी बदत्तर हो।

 

 

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

सच्बी हिंकीया। या ... हिस्सा अव्वल
हिकायत नस्पर &) हुज्रा सथ्अन्स०) और
मलक-उल-मौत
सरवरे आलम सल-लल्लाहो त्तआला
शरीफ का जब वक्‍त आया तो मलक-उल-मौत किला के विसाल
हाजिर हुआ जिब्नाईले अमीन ने अर्ज किया: ह मईयत में
0 50 0308 ! ये मलक-उल-मौत आया है और
करता है, हुजर! उसने आज तक कभी ना |

की आपके बाद किसी से इजाजत लेगा हुजर अगर 0498 हट हे
काम करे हुजर ने फ्रमाया! मलक-उल-मौत को आगे आने दो चुनाँचे
प्रलक-उल-मौत आगे-बढ़ा और अर्ज करने लगा ” या रसूल अल्लाह! अल्लाह
तआला ने मुझे आपकी तरफ भेजा है और मुझे ये हुक्म दिया है के मैं आपका
हर हम मानूं और जो आप फ्रमाएँ वही करूँ, लिहाजा आप अगर फ्रमाएँ
तो मैं रूह मुबारक कब्ज करूं वरना वापस चला जाऊँ जिब्राइंल ने अर्ज
किया, हुजूर! खुदा बंद करीम आपके लकाऐ विसाल को चाहता है हुज॒र
ने फ्रमया तो ऐे मलक-उल-मौत तुम्हें जान लेने की इजाज है, जिब्राईल
बोले हुजूर! अब जब के आप तशरीफ्‌ लिए जा रहे हैं तो फिर जुमीन पर
मेरा ये आखिरी फेरा है इसलिए के मेरा मक्सूद तो आप ही थे, इसके बाद

मलक-उल-मौत कब्ज रूहे अनवर के शरफ्‌ से मुशर्रफ हुआ।
443 8 सफा 5/, जिल्द: 4, मिश्कात शरीफ सफा 54)
पा 2:- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम की
इतनी बड़ी शान है के वो मलक-उल-मौत जिसने कभी किसी बड़े से बड़े
बादशाह से भी इजाजत नहीं ली हमारे हुजर की खिदमत में हाजिर होकर
3 इजाजत तलब करता है और यूं कहता है के अगर आप फरमाएँ तो
वरना वापस चला जाऊँ और खुदा उसे ये हुक्म देकर भेज॑ता है के
कर “हमूब की इताअत करना, जो वो फ्रमाएँ वही करना बावजूद उसके
उनसे जी... को अपनी मिस्ल कहते हैं किस कृद्र गुमराह हैं क्या कभी

मलक-उल-मौत ने इजाजत ली है।

हिकायत नम्बर ७ शाही इसतकूबाल
जिब्नाइल, भैल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम के विसाल शरीफ्‌ के वक्त
अमीन हाजिर हुआ और अर्ज करने लगा या रसूल अल्लाह! आज

9९606 99 (थ्वा]5८शाशश'

आप से इजाजत

सच्ची हिकायात 5५6 न हे हिस्सा अव्वल
' आसमानों पर हुज॒र के इसतक्बाल की | हो रही हैं, खुदा तआला ने
जहन्नम के दारोगा मालिक को हुक्म दिया है के मालिक! मेरे हबीब की रूह
मुतहेरा आसमानों पर तशरीफ्‌ ला रही है, इस ओजाज में दोजुख की आग
बुझा दे और हूराने जन्नत से फ्रमाया के तुम सब अपनी तजईन व आरास्तगी
करों और सब फ्रिश्तों को हुक्म दिया है के तअजीमे रूह मुसत्तफा के लिए
सब सफ बसफ खड़े हो जाओ और मुझे हुक्म फ्रमाया है के में जनाब की
खिदमत में हाजिर होकर आपको बशारत दूं के तमाम अम्बिया और उनकी
उम्पतों पर जन्नत हराम है जब तक के आप और आपको उम्मत जन्नत में
दाखिल ना हो जाए और कल क्यामत को अल्लाह तआला आपकी उम्मत्‌
पर आपके तुफूल इस क॒द्र बख््शिश व मगृफ्रित की बारिश फरमाएगा के
आप राजी हो जाएँगे। ( मदारिज-उन्नबुव्वत सफा 54 जिल्द 2)

.. सबक्‌ः- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम का
ओजाज व इक्राम दोनों आलम में है और जिन्न व बशर हूरो मलायक सभी
हुजर के खुद्दाम व लश्करी हैं और आप दोनों आलम के बादशाह हैं।

हिकायत नम्बर 0 हुजर सम्अन्सः ) का गुसल मुबारक
हुजर सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍लम के ग्स्ल मुबारक के वक्‍त
सहाबाइक्राम अलेहिम-उर्रिजुवान सोचने लगे और आपस में कहने लगे के
जिस तरह दूसरे लोगों के कपड़े उतार कर उनको गृस्ल दिया जाता है क्या
इसी तरह हुज॒र के कपड़े मुबारक भी उतार कर हुजूर को गृस्ल दिया जाएगा
या हुज॒र को कपड़ों समेत गस्‍ल दिया जाए? इस बात पर गुफ्तगू कर रहे थे
के अचानक सब पर नींद तारी हो गई और सब के सर उनके सीनों पर ढलक
आए फिर सब को एक आवाज आईं, कोई कहने वाला कह रहा था के तुम
जानते नहीं ये कौन हैं? खबरदार! ये “रसूल अल्लाह ” हैं इनके कपड़े ना
उतारना इन्हें “कपड़ों समेत ही गुस्ल दो” फिर सब की आँखें खुल गईं और
हुजूरः को कपड़ों समेत ही गुस्‍ल दिया गया। ( मबाहिब लद॒निया सफा 37
जिल्द 2 मिश्कात सफा 59)
सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की
शान सब से मुमताज और बरगजीदा है और कोई शख्स ऐसा नहीं जो उनकी
मिस्‍ल हो आपकी ये जिन्दगी आपका विसाल शरीफ, आपका गृसल शरीफ
और आपका कब्र अनवार में रोनक्‌ अफ्रोजू होना हर बात आपकी मुमताज
है और कोई शख्स किसी बात में आपकी मिस्‍्ल नहीं।

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

हिकावा 3/
की हिंकायत नम्बर 80 कृब्र अनवर से बाज

आवाज
(जस्त अली रजी अल्लाहो अन्ह फरमाते हैं जब हम हुज॒र सल-लल्लाहो
अलेह व सल्लम के दफ़ने मुबारक से फारिग हुए तो तीन रोज के बाद
कब्रे अनवर पर हाजिर हुआ और कब्र अनवर के सामने गिर
हर क्न्ब अनवर की खाक अपने सर डालने लगा और फिर कहने लगा। या
अल्लाह! जो कुछ आपने फ्रमाया हम ने सुना और आपकी जुबानी हम
अनफुसाहुम

आन की ये आयत भी सुनी कलो अन्नाहुम
आपके पास

जाऊका “यानी जो लोग अपनी जानों पर जुल्म कर बेठें वो
हाजिर हों” पस ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपनी जान पर जल्म कर बैठा हूँ
और अब गुनाहों की माफी के लिए आपके पास आ पहुँचा हूँ।

आराबी ने ये कहा तो कृत्र अनवर से आवाज आईं, “जाओ अल्लाह ने
तुर्ें बख़शा दिया।” ( हु,ज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन सफा 77)

सबक्‌:- हमारे हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम का
दरबार रहमत, विसाल शरीफ के बाद भी बदस्तूर लगा हुआ है और हुजर
अपने विसाल शरीफ के बाद भी गुनहगारों के लिए जरियाऐ निज़ात और
पुनब्बओ फयूज व बर्कात हैं और आज भी हम हुज॒र सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्‍लम के बदस्तू मोहताज हैं। हे

हिकायत नम्बर 09 कृत्र अनवर से अज़ान की आवाज

जिन दिनों लश्करे यजीद ने मदीना मुनव्वरह पर चढ़ाई की उन दिनों तीन
दिन मस्जिद नबत्वी में अजान ना हो सकी हजरत सईद बिन अलमसीब र्जी
अल्लाह अन्ह ने ये तीन दिन मस्जिद नबत्वी में रह कर गुजारे, आप फरमाते
हैं के नमाज के बकृत हो जाने का मुझे कुछ पता नहीं चलता था मगर इस
7रह जब नमाज का वक्‍त आता कृब्र अनवर से एक हल्की सी अजान की
आवाज आने लगती। ( मिश्कात शरीफ सफा 59)
सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम कब्र
नव में भी जिन्दा हे और जो शख्स ( मआजृ अल्लाह ) हुज॒र को मर कर
मिट्टी में मिल जाने बाला लिखता है वो बड़ा बे अदब और गुस्ताखे रसूल है।

हिकायत नम्बर ७) आसमान का गिरया

मुनव्वरह में एक बार कहेत पड़ गया, बारिश होती ही ना थी लोग
>'जुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजी अल्लाहो अन्हा की खिदमत

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश'

संच्ची हिकायात 58 हिस्सा अव्वल
में फरयाद लेकर हाजिर हुए हजरत उम्मुल मोमिनीन रजी अल्लाहो अच्हा ने
फ्रमाया, हुज्‌र सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍्लम की क॒न्न अनवर पर
से छत में एक सूराख कर दो ताके आसमान और कून्र में कोई हिजाब ना रहे
चुनाँचे लोगों ने ऐसा ही किया तो इस क्‌द्र बारिश हुईं के खेतियाँ हरी भरी
हो गईं और जानवर मोटे हो गए मोहद्दिसीन लिखते हैं के आसमान ने जब
कब्र अनवर को देखा तो रो पड़ा था। ( मिश्कात शरीफ सफा 527)
सबक्‌ः- हमारे हुजुर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम का
फ्यूज पाक विसाल शरीफ के बाद भी बदस्तूर जारी है और हुजर को
कब अनवर की जियारत से हर आँख आँसूओं के फूल बरसाने लगती
है और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह से कुछ पाने के लिए हजर का
वसीला जरूरी है। हे

हिकायत नम्बर ७) बिलाल का ख़्वाब

हजरत उमर रजी अल्लाहो अन्ह के अहेदे खिलाफत में एक मर्तबा कहेत
पड़ गया तो हजरत बिलाल बिन हारिस मुजनी रजी अल्लाहो अन्ह रोजाऐ
अनवर पर हाजिर हुए और अर्ज किया या रसूल अल्लाह! आपकी उप्मत
हलाक हो रही है बारिश नहीं होती, हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व
सल्लम उन्हें ख़्वाब में मिले और फरमाया ऐ बिलाल! उमर के पास जाओ उसे
मेरा सलाम कहो और कह दो के बारिश हो जाएगी और उमर से ये भी कहना
के कुछ नर्मी इख़््तियार करे ( ये हुज॒र ने इस लिए फ्रमाया के हजरत उमर
फारूक रजी अल्लाहो अन्ह दीन के मामले में बड़े सख्त थे ) हजरत बिलाल
हजूरत उमर की खिदमत में हाजिर हुए और हुज॒र का सलाम व पैगाम पहुँचा
दिया, हजरत उमर ये सलाम व पैगामे महबूब पा कर रोए और फिर बारिश
भी खूब हुई। ( शवाहिद-उल-हक्‌-लिलनबहानी सफा 67)

सबक्‌:- मालूम हुआ के विसाल शरीफ के बाद भी सहाबाइक्राम
मुश्किल के वक्‍त हजर ही की खिदमत में हाजिर होते थे और हर
मुश्किल यहीं से हल होती थी और ये भी मालूम हुआ के हजूरत उमर
फारूक रजी अल्लाहो अन्ह की बड़ी शान है और आप खुलीफा
बरहक्‌ हैं और इस क॒द्र खुशक्रिस्मत हैं के विसाल शरीफ के बाद
भी हुजर के सलाम व पैगाम से मुशर्रफ होते हैं फिर जिसे फारूके
आजम से अदावत होगी वो हजर सल-लल्लहो तआला अलेह व
सललम को क्‍यों ना बुरा लगेगा।

9९९06 99 (थ्वा5८शाशश'

हिका4 8९॥ जैज हिस्सा ५

(व हिकायत नम्बर उम्मे फातिमा मी
की एक औरत उम्मे फातिमा क्‍ में

असकन्द्रिया श तिमा मदीना मुनव्वरह में हाजिर

हुई तो उसका एक 8824: जख्मी और मुतावर्रिभ हो गया हत्ता के है

(है गई लोग मक्का मोअज्जमा जाने लगे मगर वो वहीं रह गईं, एक दिन वो

किसी तरह रोजाऐ अनवर पर हाजिर हुईं और रोजाऐं अनवर का तवाफ करने

करती जाती और ये कहती जाती, या हबीबी या रसूल अल्लाह

लगी तवाफ ! हि
चले गए और मैं रह गई, हुज्र! या तो मुझे भी वापस भेजिये या
8 पास बुला लीजिए ये कह रही थी के तीन अरबी नोजवान बम
हुए और कहने लगे के कौन मसक्‍्का मोअज़्जमा जाना चाहता है उप्मे
फातिमा ने जल्दी से कहा मैं जाना चाहती हूँ उनमें से एक बोला तो उठो,
उम्मे फातिमा बोली मैं उठ नहीं सकती उसने कहा अपना पैर फैलाओ तो
उम्मे फातिमा ने मतावर्रिम पैर फैला दिया उसका जो अब मुतावर्रिम पैर देखा
तो तीनों बोले हाँ यही वो है और फिर तीनों आगे बढ़े और उम्मे फातिमा
को उठा कर सवारी पर बैठा दिया और मक्का मोअज़्ज्मा पहुँचा दिया और
दरयाफ्त करने पर उनमें से एक नोजवान ने बताया के मुझे हुज॒र ने ख़्वाब में
हुक्म फ्रमाया था के उस औरत को मक्का पहुँचा दो उम्मे फातिमा कहती
है के मैं बड़े आराम से मक्का पहुँच गई। ( शवाहिद-उल-हक सफा १64)
सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम आज
भी हर फ्रयादी की फरयाद सुनते हैं और हर मुश्किल हल फरमा देते हैं
बशर्त ये के फरयादी दिल और सच्ची अकीदत से या हबीबी या रसूल
अल्लाह कहने का भी आदी हो।

हिकायत नम्बर (8) एक हाशमी औरत
मदीना मुनव्वरह में एक हाशमी औरत रहती थी उसे बअज लोग ईजा
दिया करते थे एक दिन वो हजर के रोजे पर हाजिर हुई और अर्जु करने लगी,
वा रसूल अल्लाह! ये लोग मुझे ईजा देते हैं, रोजाऐं अनवर से आवाज आई।
क्या मेरा असवाऐ हस्ना तुम्हारे सामने नहीं, दुश्मनों ने मुझे ईज़ाएँ दीं
और मैंने सब्र किया मेरी तरह तुम भी सब्र करो, वो औरत फ्रमाती है के
मुझे बड़ी तसकीन हुई और चन्द दिन के बाद मुझे ईजा देने वाले भी मर गए।
सबक्‌:- हमारे हजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम सबकी

9९९6 099 (थ्वा]5८शाशश'

. हिस्सा अव्वल
हिकॉयात 60
सच्ची हिकायात के लिए आप ही का दर, जाऐ पनाह है और या

सुनते है। और हर मजुलूम
रसूल हि कहने से हुजर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम की
जानिब से रहमत व तसकीन, हासिल होती है।

हिंकायत नम्बर ७७ रसूल अल्लाह( स०्अध्सः ) का
..._ प्ैगाम एक मजूसी के नाम

शीराज के एक बुजर्ग हजरत फाश फ्रमाते हैं मेरे हाँ एक बच्चा पैदा
हुआ और भेरे पास खर्च करने के लिए कुछ भी ना था और वो मोसम इन्तिहाई
सर्दी का था मैं उसी फिक्र में सो गया तो ख़्वाब में हुजुर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम की जियारत नसीब हुई आपने फ्रमाया क्‍या बात
है? मैंने अर्ज किया हुज॒र खर्च के लिए मेरे पास कुछ नहीं बस इसी फिक्र
में था, हुज॒र ने फ्रमाया, दिन चढ़े तो फलाँ मजूसी के घर जाना और उससे
कहना के रसूल अल्लाह ने तुझे कहा है के बीस दीनार तुझे दे सा दे, हजरते
फाश सुबह उठे तो हैरान हुए के एक मजूसी के घर कैसे जाऊँ और रसूल
अल्लाह का हुक्म वहाँ कैसे सुनाऊँ और फिर ये बात भी दुर॒स्त है के ख़्वाब
में हुजर नजर आएँ तो वो हुजर ही होते हैं इसी शश व पंज में वो दिन गुजर
गया और दूसरी रात फिर हुज॒र की जियारत हुई और हुजुर ने फ्रमया तुम
इस खयाल को छोड़ो और उस मजूसी के पास जाकर मेरा पैगाम दो चुनाँचे
हजरत फाश सुबह उठे और उस मजूसी के घर चल पड़े, क्‍या देखते हैं के
वो मजूसी अपने हाथ में कुछ लिए हुए दरवाजे पर खड़ा है जब उसके पास '
पहुँचे तो चूंके वो उनको जानता ना था और ये पहली मर्तता उसके पास आए
थे इसलिए शर्मा गए और वो मजूसी खुद ही बोल पड़ा, बड़े मियाँ! क्‍या कुछ
हाजत है? हजरत फाश बोले हाँ मुझे रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सललम ने तुम्हारे पास ये कह कर भेजा है के तुम मुझे बीस दीनार
दे दो, उस मजूसी ने अपना हाथा खोला और कहा तो लीजिए ये बीस दीनार
मैंने आप ही के लिए निकाल रखे थे और आपकी राह देख रहा था। हजरत
फाश ने वो दीनार ले लिए और उस मजूसी से पूछा, भई में तो भला रसूल
अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम को ख़्वाब में देख कर यहाँ
आया हूँ मगर तुझे मेरे आने का कैसे इल्म हो गया तो वो बोला, मैंने रात को
उस शक्ल व सूरत्त के एक नूरानी बुजर्ग को ख़्वाब में देखा है जिसने मुझ से
फरमाया के एक शख्स साहिबे हाजत है वो कल तुम्हारे पास पहुँचेगा उसे
बीस दीनार दे देना चुनाँचे मैं ये बीस दीनार लेकर तुम्हारे ही इन्तिजार में था।

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश'

9॥ हिस्सा. अव्वल
सच हि, ने जब उसकी जूबानी रात को मिलने वाले नूरांनी बुजर्ग का
हजरत सुना तो वो ह॒जूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम का था चुनाँचे फाश
बसे कहा, यही रसूल सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम हैं उस मजूसी ने ये
ने उससे धुन कर थोड़ी देर तोकिफ्‌ किया और फिर कहा मुझे अपने घर ले
वा चु्नाचे वो हजरत फाश के घर आया और कलमा पढ़ कर मुसलमान
गया फिर उसकी बीवी, बहन और उसकी औलाद भी मुसलमान हो गईं।
शवाहिद-उल- है ” सफा ॥69)
( सबक्‌ः- हमारे हुजूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की नजुरे रहमत
कु चर भी पड़े जाए उसका बेड़ा पार हो जाता है और ये भी मालूम हुआ
हर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम अपने मोहताज गलामों की फरयाद
सुतते हैं और विसाल शरीफ के बाद भी मोहताजों की मदद फरमाते हैं।

हिकायत नम्बर ७) ख्वाब का दूध

हजरत शेख अबु अब्दुल्लाह फरमाते हैं एक मर्तबा हम मदीना मुनव्वरह
हाजिरत हुए तो मस्जिद नबत्बी में महेराब के पास एक बुजुर्ग आदमी को
सोए हुए देखा थोड़ी देर में वो जागे और जागते ही रोजाएं अनवर के पास
जाकर हुजर अनवर सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम पर सलाम अर्जू किया
और फिर मुसक्ुराते हुए लौटे एक खादिम ने उन से इस मुसकुराहट की वजह
पूछी तो बोले मैं सख्त भूका था इसी आलम में मैंने रोजाऐे अनवर पर हाजिर
होकर भूक की शिकायत की तो ख़्वाब में मैंने हुजर को देखा आपने मुझे
एक पियाला दूध का अता फ्रमाया और मैंने खूब पेट भर कर दूध पिया और
फिर उस बुजुर्ग ने अपनी हथेली पर मुंह से थूक कर दिखाया तो हम ने देखा
के हथेली पर वाकई दूध ही था। ( हुज्जत-उल्लाह,अलआलमीन, सफा 80)

सबक:- हुजर( स०्अब्स० ) को ख़्वाब में देखने बाला हुजर ही को
देखता है और हुजर की ख़्वाब में भी जो अता हो वो वाकुईं अता होती है
और ये भी मालूम हुआ के हुजर भी वैसे ही जिन्दा हैं जैसे पहले थे।

हिकायत नम्बर ७ ख़्वाब की रोटी...

|. हजरत अबुअलखेर फ्रमाते हैं एक मर्तबा मैं मदीना मुनव्वरह में हाजिर
ह्आा ३ मुझे पाँच दिन का फाक॒ह आ गया, मैं रोजाऐे अनवर पर हाजिर
हुआ और हुजर पर सलाम अर्ज करके फिर हजरत अबु बक्र और हजरत
उपर रजी अल्लाहो अन्हमा पर सलाम अर्ज़ किया और फिर अर्ज किय

9९९6 099 (थ्वा58८शाशश'

सच्ची हिकायात 652... ५ हिस्सा अव्वल
या रसूल अल्लाह! मैं तो आप का मेहमान हूँ और पाँच रोज से भूका हूँ,
अबुअलखैर कहते हैं के मैं फिर मिंबर के पास सो गया तो ख़्वाब में देखा
के हुज॒र॒ सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम तशरीफ लाए हैं आपके दायें तरफ्‌
हजरत सिद्दीकु और बायें तरफ्‌ हजरत उमर और आगे हजूरत अली (रजी
अल्लाहो अन्हुम ) थे। हजरत अली ने मुझे आगे बढ़ कर खबरदार किया
और फरमाया उठो वो देखो! रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम
तशरीफ ला रहे हैं और तुम्हारे लिए खाना लाए हैं, मैं उठा और देखा के
हुज॒र के हाथ में रोटी है वो रोटी हुजर ने मुझे अता फरमाई मैंने हुज्र की
पैशानी अनवर को बोसा देकर वो रोटो ले ली और खाने लगा आधी खाली
तो मेरी आँख खुल गई क्‍या देखता हूँ के बाकी आधी रोटी मेरे हाथ में है।
( हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन, सफा 80 )

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्‍लम विसाल
शरीफ के बाद भी कासिम रिज़्क्‌ु उल्लाह हैं और मोहताजों के लिए दाता
हैं और ये भी मालूम हुआ के बुजर्गाने दीन अपनी तकालीफ व मुश्किलात
बारगाहे नबव्वी में पेश किया करते थे और हुजूर विसाल के बाद भी अपने
गूलामों की फ्रयाद रसी फरमाते हैं।

हिकायत नम्बर ७0 शाहे रोम का कैदी

उन्दलिस के एक मर्द सालेह के लड़के को शाहे रोम ने कैद कर लिया
था वो मर्द सालेह फ्रयाद लेकर मदीना मुनव्वरह को चल पड़ा रास्ते में
एक दोस्त मिला, और उसने पूछा कहाँ जा रहे हो? तो उसने बताया के मेरे
लड़के को शाहे रोम ने कैद कर लिया है और त्तीन सौ रूपये उस पर जुर्माना
कर दिया है। मेरे पास इतना रूपया नहीं जो देकर मैं उसे छुड़ा सकूँ इसलिए
मैं हुजः सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम के पास फ्रयाद लेकर जा रहा हूँ
उस दोस्त ने कहा मगर मदीना मुनव्वरह ही पहुँचने की क्‍या जुरूरत है हुज्र
से तो हर मकान पर शफाअत कराई जा सकती है उसने कहा ठीक है मगर
मैं तो वहीं हाजिर होरऊँगा। चुनाँचे वो मदीना मुनव्वरह हाजिर हुआ और
रोजाए अनवर की हाजूरी के बांद अपनी हाजत अर्ज की फिर ख्वाब में हुजर
सल-लल्लाहो अलेह व सल्‍लम की जियारत हुईं तो हुज॒र ने उससे फ्रमाया
“जाओ अपने शहर पहुँचो ” चुनाँचे वो वापस आ गया और घर आकर देखा
के लड़का घर आ गया है, लड़के से रिहाई का किस्सा पूछा तो उसने बताया
के फलानी रात मुझे और मेरे सब साथी कैदियों को बादशाह ने खद ही

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हिकारवर्ति 03
संब्बी | था है इस मर्द सालेह ने हिसाब लगाया तोचेड हिस्सा अव्वल
रिहा की जियारत हुई थी और आपने फ्रमाया 58७) जिस

रात है. (हुज्जत-उललाह अली अलआलमीन, सफा 780 पा अपने शहर

पहुँची हमारे हुजर सल-लल्लाहो
सबक ४7 ९7६४ & अलेह व सल्लम
ह्व मदद फे करमाते हैं और क॒ब्र अनवर में तशरीफ कक
जुदा की मद हैं १ फ्रमा होकर भी अपने
पलामों ं क्की एआनत फरमाते हें और उनके गुलाम

गुलाम किसी मकान
/ ६ लब॒र्जह करें हुजूर की रहमत उनका काम कर देती है। से भी उनकी

हे हुआ के पहले हे क्‍
और ये भी मालूम हुआ के पहले बुजुर्ग की बारगाह में फाएं
करते थे और उसे किसी ने भी शिर्क नहीं कहा। . के का किया

हिकायत नम्बर (8 कातिल की रिहाई

बगृदाद के हाकिम इन्नाहीम बिन इसहाक्‌ ने एक रात ख्वाब में हुजरे
अक्रम सल-लल्लाहो अलेह व सलल्‍्लम को देखा और हुज॒र ने उससे फरमाया
“कातिल को रिहा कर दो ” ये हुक्म सुन कर हाकिम बगदाद कांपता हुआ
उठा और मातहेत अम्ले से पूछा के क्या कोई ऐसा मुज़िम भी है जो कातिल
हो? उन्होंने बताया के हाँ एक ऐसा शख्स भी है जिस पर इल्जाम- कत्ल हे
हाकिम बगृदाद ने कहा उसे मेरे सामने लाओ, चुनाँचे उसे लाया गया, हाकियें
बगृदाद ने पूछा के सच सच बताओ वाकेया क्‍या है? उसने कहा सच कहूँगा
झूट हरगिजू ना बोलूंगा, बात ये हुईं के हम अन्द आदमी मिलकर अय्याशी
व बदमाशी किया करते थे एक बूढ़ी औरत को हम ने मुक्र॑र कर रखा था
जो हर रात किसी बहाने से कोई ना कोई औरत. ले आती थी एक रात वो
एक ऐसी औरत को लाई जिसने मेरी दुनिया में इंकिलाब बर्पा कर दिया बात
० 2 वो नोवारिद औरत जब हमारे सामने आई तो चीख मार कर और
0९ डा गई मैंने उसे उठा कर एक दूसरे कमरे में लाकर उसे होश
बोशि श की और जब वो होश में आ गई तो उससे चीखने और
फिर के हक 5 हे गायों मेरे हक के 2 से

| |

रस जगह ले आई है देख:- जम जज ड़ पड

| डैके शरीफ औरत हूँ और सय्यदा हूँ, मेरे नाना रसूल अल्लाह
है _ल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍्लम और मेरी माँ फातिमा-त-उज्जोहरा
था कद इस निस्बत का लिहाज रखना और मेरी तरफ्‌ बद निगाही से

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सच्ची हिकायात 64 हिस्सा अव्वल

हर मैंने जब उस पाक औरत से जो सय्यदा थी ये बात सुनी त्तो लरज गया
और अपने दोस्तों के पास आकर उन्हें हकीकृत हाल से आगाह किया और
कहा के अगर आक्बत की खैर चाहते हो तो इस मुकर्रमा व मोअज्जभा
खातून को बे अदबी ना होने पाए। मेरे दोस्तों ने मेरे इस वाज से ये समझा
के शायद मैं उनको हटा कर खुद तनहा ही इरतिकाबे गुनाह करना चाहता
हूँ और उनसे धोका कर रहा हूँ इस खयाल से मुझ से लड़ने पर आमादा हो
गए, मैंने कहा मैं तुम लोगों को किसी सूरत में इस अग्ने शीनअ की इजाजत
जा दूंगा लड़ंगा, मर जाऊंगा मगर उस सय्यदा की तरफ बद निगाही मंजर ना
करूंगा चुनाँचे वो मुझ पर झपट पड़े और मुझे उनके हमले से एक जख्म भी
आ गया और इसी असना में एक शख्स जो उस सय्यदा के कमरे की तरफ
जाना चाहता था मेरे रोकने पर मुझ पर जो हमला आवर हुआ तो मैंने उम्त
पर छुरी से हमला कर दिया और उसे मार डाला फिर उस सय्यदा को अपनी
हिफाजुत में लेकर बाहर निकाला तो शोर मच गया छूरी मेरे हाथ में थी पैं
पकड़ा गया और आज ये बयान दे रहा है

हाकिमे बगृदाद ने कहा, जाओ तुम्हें रसूल सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सललम के हुक्म से रिहा किया जाता है। ( हुज्जत-उल्लाह अली
अलआलपमीन सफा 803 ) ु

सबक्‌:- हमारे हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍लम अपनी
उम्मत के हर नेक व बद आदमी और हर नेक व बद अमल को जानते और
देखते हैं और ये भी मालूम हुआ के हुजर की निस्बत के लिहाज व अदब
से आदमी का अंजाम अच्छा हो जाता है लिहाजा हर उस चीज का दिल में
अदब व एहब्रामे रखना चाहिए जिसका हुज॒र सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सल्लम से ताल्लुक्‌ हो। ०

हिकायत नम्बर ७७ जजीरे का केदी

इब्ने मरजक बयान करते हैं के जजीराऐं शिक्र के एक मुसलमान क्को
दुश्मनों ने कैद कर लिया और उसके हाथ पाँऊ लोहे की जंजीरों से बाँध कर
कैदखाने में डाल दिया और उस मुसलमान ने हुजर सल-लल्लाहो तआला
अलेह व सल्‍लम का नाम लेकर फरयाद की और जोर से कहने लगा “या
रसूल अल्लाह” ये नअरा सुन कर काफिर बोले अपने रसूल से कहो तुम्हें
इस कैद से छूड़ाने आए फिर जब रात हुई और आधी रात का वक्त हुआ तो
'कैदखाने में कोई शख्स आया और उसने कैदी से कहा, उठो! “अजान कहो ”

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। 65 सदर
| हिस्सा अव्वल
ली किला दे न जजीरे पहुँचा अज्नहदत्ना
कैदी अल्लाह तो उसकी सब जंजीरें टूट गईं और वो आजाद हो
फिर सामने एक लकी रिहा हो गया और वो उस बाग से होता
गर्थी गया, सुबह उसको रिहाई का सारे जजीरे में चर्चा है
हुआ बाहर दक सफा 62) परे में चर्चा होने लगा।
( :- मुसलमान हुजूर सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍्लम
उक्षतत सिसालत हमेशा लगाते रहे और इस नअरा का मजाक उड़ाना
क्का काले र्सालत का काम है और ये भी मालूम हुआ के हुज॒र सल-लल्लाहो
का अलेह व सलल्‍लम का नाम मुश्किल कुशा है के ये नाम लेते ही मुसीबत
कली कड़ियाँ दूट जाती हैं। ्ि
हिकायत नम्बर ७0 फंसा हुआ जहाज
एक मर्दे सालेह को एक काफिर बादशाह ने गिरफ्तार कर लिया वो
फरमाते हैं उस बादशाह का एक बहुत बड़ा जहाज दरया में फंस गया था
जो बड़ी कोशिश के बावजूद दरया से निकल ना सका आखिर एक दिन
जिम्त क्र कैदी थे उनको बुलाया गया ताके वो सब मिलकर उस जहाजू
को निकालें चुनाने उन कैदियों ने जिनकी त्तअदाद तीन हजार थी मिलकर
कोशिश की मगर फिर भी वो जहाज निकल ना सका फिर उन कैदियों
ने बादशाह से कहा के जिस कुद्र मुसलमान कैदी हैं उनको कहिये वो ये
जहाज निकाल सकेंगे लेकिन शर्त ये है के वो जो नअरा लगाएं उन्हें रोका
ना जाए, बादशाह ने ये बात तसलीम कर ली और सब मुसलमान कैदियों
को रिहा कर के कहा के तुम अपनी मर्जी के मुताबिक्‌ जो नअरा लगाना
चाहो लगाओ और उस जहाज को निकालो। वो मर्दे सालेह फ्रमाते हैं के
हम सब मुसलमान कैदियों की तअदाद चार सौ थी हम ने मिल कर नअराऐ
रिसालत लगाया और एक आवाज से “या रसूल अल्लाह ” कहा और जहाजू
को एक धक्का लगाया तो वो जहाज अपनी जगह से हिल गया फिर हम ने
नअरा लगाते हुए उसे रूकने नहीं दिया हत्ता के उसे बाहर निकाल दिया।
( शवाहिद-उल-हक्‌-लिलनबहानी सफा ॥6)
सबक;:- नअराऐ रिसालत मुटतमरानों का मेहबूब नअरा है और
उसे हमेशा अपनाए रखाऔर उस नामे पाक से बड़े बड़े
काम हल हो जाते हैं फिर जो शख्स उस नअरा की मुखाल्फत करे
कृद्र बेखबर है | ॒

 

 

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सच्ची हिकायात 66 हिस्सा अव्वल
. हिकायत नम्बर ७) एक सब्यदजादी और मजूसी

मुल्के समरकन्द में एक बेवा सय्यदजादी रहती थी उसके चन्‍न्द
भी थे, एक दिन वो अपने भूके बच्चों को लेकर एक रईस आदमी के पाप्त
पहुँची और कहा मैं सय्यदजादी हूँ मेरे बच्चे भूके हैं उन्हें खाना खिलाओ, वो
रईस आदमी जो दौलत के नशे में मख़्मूर और बराए नाम मुसलमान था कहने
लगा तुम अगर वाकुई सय्यदजादी हो तो कोई दलील पेश करो, सय्यदजाले
बोली मैं एक गुरीब बेवा हूँ जुबान पर एतबार करो के सय्यदजादी हूँ और
दलील क्या पेश करूँ? वो बोला मैं जुबानी जमा खर्च का मोअतकिद नहीं
अगर कोई दलील है तो पेश करो वरना जाओ , वो सय्यदजादी अपने बच्चों
को लेकर वापस चली आई और एक मजूसी रईस के पास पहुँची और अपना
किस्सा बयान किया वो मजूसी बोला, मोहत्रमा! अगरचे मैं मुसलमान नहीं
हूँ मगर तुम्हारी सियादत की तअजीम व क॒द्र करता हूँ आओ और मेरे हाँ हे
कयाम फ्रमाओ मैं तुम्हारी रोटी और कपड़े का जामिन हूँ, ये कहा और उम्े
अपने हाँ ठहरा कर उसे और उसके बच्चों को खाना खिलाया और उनकी
बड़ी खिदमत की, रात हुई तो वो बराए नाम मुसलमन रईस सोया तो उसने
ख़्वाब में हुजर॒ सरवरे आलम सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम को
देखा जो एक बहुत बड़े नूरानी महल के पास तशरीफ्‌ फ्रमा थे, इस रईस ने
पूछा या रसूल! ये नूरानी महल किस लिए है? हुजर ने फ्रमाया, मुसलमान
के लिए, वो बोला तो हुजर मैं भी मुसलमान हूँ ये मुझे अता फ्रमा दीजिए,
हुजर ने फरमाया अगर तू मुसलमान है तो अपने इस्लाम की कोई दलील पेश
कर! वो रईस ये सुनकर बड़ा घबराया, हुज॒र ने फिर उसे फ्रमाया मेरी बेटी
तुम्हारे पास आए तो उससे सियादत की दलील तलब करे और खुद बगैर
दलील पेश किए इस महल में चला जाए ना मुमकिन है, ये सुन कर उसकी
आँख खुल गई और बड़ा रोया फिर उस सय्यदजादी की तलाश में निकला
तो उसे पता चला के वो फलाँ मजूसी के घर कयाम पजीर है चुनाँचे उप
मजूसी के पास पहुँचा और कहा के हजार रूपये ले लो और वो सय्यदजाद॑
मेरे सपुर्द कर दो, मजूसी बोला क्‍या मैं वो नूरानी महल एक हजार
पर बेच दूं? ना मुमकिन है, सुन लो! हुज॒र॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह 4
सल्लम जो तुम्हें ख़्वाब में मिलकर उस महल से दूर कर गए हैं वो मुझे ४
ख़्वाब में मिलकर और कलमा पढ़ा कर उस महल में दाखिल फ्रमा गए अर
मैं भी बीवी बच्चों समेत मसलमान हँ और मझे हजर बशारत दे गए हैं के |

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश'

हिकरयीात है 67 “हिस्सा अब अव्वल ल्‍

के अयाल समेत जन्नती है। ( नुजहत-उल-मजालिस सफा क्‍५4 जिल्‍्द 2)

सबकः- दलील तलब करने वाला बराए नाम मुसलमान भी जन्नत से
पहुखूमे रहे गया और निस्‍्बते रसूल का लिहाज करके बगैर दलील के भी
वअजीम व अदब का वाला एक मजूसी भी दौलते ईमान से मुशर्रफ होकर
क्षत्रत पा गया मालूम हुआ के अदब व तअजीम रसूल के बाब में बात बात
पर दलील तलब करने वाले बराए नाम मुसलमान बदबख़्त और महरूम रह.
जाने वाले हैं।

हिकायत नम्बर ७0 अब्दुल्लाह बिन मुबारक
और सय्यदजादा

हजूरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमत-उल्लाह अलेह एक बड़े मजमओे
के साथ मस्जिद से निकले तो एक सब्यदजूदे ने उनसे कहा।

ऐ अब्दुल्लाह! ये कैसा मजमअ है? देख मैं फरजन्द रसूल हूँ और तेरा
बाप तो ऐसा ना था, हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने जबाब दिया, मैं
वो काम करता हूँ जो तुम्हारे नाना जान ने किया था और तुम नहीं- करते
और ये भी कहा के बेशक तुम सय्यद हो और तुम्हारे वालिद रसूल अल्लाह
सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लपं हैं और मेरा वालिद ऐसा ना था
मगर तुम्हारे वालिद से इल्म की मीरास बाकी रही, मैंने तुम्हारे वालिद की
मीरास ली में अजीज और बुजूर्ग हो गया तुम ने मेरे वालिद की मीरास ली
तुमइज्जूत नापासके।.......

उसी रात ख्वाब में हजुरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने हुजर सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सल्‍लम को देखा के चेहराऐं मुबारक आपका मुतगय्यर है,
अर्जु किया या रसूल अल्लाह! ये रंजिश क्‍यों? फ्रमाया! तुम ने मेरे एक बेटे
पर नुक्ता चीनी की है अब्दुल्लाह बिन मुबारक जागे और उस सय्यदजादे की
पलाश में निकले ताके उससे माफी तलब करें, इधर इस सय्यद जादे ने भी
उसी रात को ख़्वाब में हुज़॒रे अक्रम को देखा और हुज॒र ने उससे ये फ्रमाया

बेटा अगर अच्छा होता तो वो तुम्हें क्यों ऐसा कलमा कहता बो सय्यद
जादा भी जागा और हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक की तलाश में निकला
चुनांचे दोनों की मुलाकात हो गई और दोनों ने अपने अपने ख़्वाब सुना कर
पक दूसरे से मआजूरत तलब कर ली। ( तज॒करत-उल-औलिया सफा (73)
-....0:7 हमारे सल-लल्लाहो तआला अलेह व सललम उम्मत को

9०९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

0 कि... 658 हिस्सा अच्बल
हर जात पर शाहिद और हर बात से बाखूबर हैं और ये भी मालूम हुआ के
२४ सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम से निस्बत रखने बाली किसी
ग पर नुक्ता चीनी करना हुजर की खृफ्गी का मौजिब है।

_हिकायत नम्बर ७७ अबु अलहसन खरकानी और
हदीस का दर्स

हैं जृरत अनु अलहसन खुरकानी अलेह अरहमा के पास एक शख्स इल्मे
हदीस पढ़ने के लिए आया और दरयाफ्त किया के आपने हदीस कहाँ से
पढ़ी? हजरत ने फ्रमाया, बराहे रास्त हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह ब
सल्लम से, उस शख्स को यकोन ना आया, रात को सोया तो हुज॒र ख्याब
में तशरीफ्‌ लाए और फ्रमाया अबु अलहसल सच कहता है मैंने ही उसे
पढ़ाया है, सुबह को हजरत अबु अलहसन की खिदमत में वो हाजिर हुआ
और हदीस पढ़ने लगा, बअज मुकामात पर हजरत अबु अलहसन ने फरमाया
हदीस आँ हजरत सल-लल्लाहो तआला अलेह व सलल्‍्लम से मरवी नहीं उस
शख्स ने पूछा के आपको कैसे मालूम हुआ, फ्रमया तुम ने हदीस पढ़ना
शुरू को तो मैंने हुजर॒ सल-लल्लाहो तआला अलेह व॑ सल्‍लम के अब्नरूऐ
मुबारक को देखना शुरू किया मेरी आँखें हुज॒र के अन्नरूऐ मुबारक पर हैं
जब हुजूर के अब्नरूऐ मुबारक पर शिकन पड़ते है तो मैं समझ जाता हूँ के
हुजूर इस हदीस से इंकार फ्रमा रहे हैं। ( तजकरत-उल-औलिया सफा 4%)
.. सबक :- हमारे हुज॒र[ सन्‍्अब्स० ) जिन्दा हैं और हाजिर व नाजिर और
ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले हुज॒र के दीदारे पुर अनवार से अब भी
मुशर्रफ होते हैं फिर जो हुजूर को जिन्दा ना माने वो खुद ही मुर्दा है।

_हिकायत नम्बर ७७ एक वली और मोहहिस

एक वली एक मोहहिस के दर्से हदीस में हाजिर हुए तो एक मोहहिस ने
एक हदीस पढ़ी और कहा काला रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह
व सललम यानी रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो तआला अलेह ब सल्लम ने य्‌ं
फ्रमाया तो वो वली बोले, ये हदीस बातिल है रसूल अल्लाह सल-लल्लाहो
तआला अलेह व सललम ने हर गिज यूं नहीं फ्रमाया, वो मोहहिस बोले
के तुम ऐसा क्‍यों कह रहे हो? और तुम्हें कैसे पता चला के रसूल अल्लाह

सल-लल्लाहो तआला अलेह व सल्लम ने ऐसा नहीं फरमाया? तो बली ने
जवाब दिया:-

 

 

9९९06 99 (थ्वा]5८शाशश'

हिंक्कायात 69
6 अन्नषिय्यू सल-लल्लाहो अलेही व सल्त्रम बक
टिका “हे हल अलेह व सल्ता, नस! “ये देखो नबी करीम
५ तआला अलेह व सल्लम तुम्हारे सर पर हर &
डे मैंने हर 22080 हदीस ३5५ अ ह
मोहद्धिंस हैरान रह गए और वली बोले, क्या तुप
वो चाहते हो तो देख लो, चुनाँचे जब उन मोहहिस 2 अप
की को तशरीफ फ्‌रमा देख हा । ( फ्तावा हदीस सफा 2(2)

6६ ब्रक:- हमारे हुजूर हाजिर व नाजिर हैं मगर देखने के लिए किसी
क्कनिजर दरकार है और किसी कामिल वली की नजरे करम हो जाए
थो आज भी सरकारे अबद करार के दीदार पुर अनवार का शरफ्‌ हासिल
हो सकता है।

एक मुशायरा
एक मजलिस मुशायरे में एक इसाई शायर ने हस्बे जेल शैर कहे :-
मोहम्मद तो जमीं में बेगुमाँ है! |
फलक पर इब्ने मरयम का मक्का है
जो ऊँचा है वही अफजल रहेगा
जो नीचे है धला अफ्जल कहाँ है?
एक मुसलमान शायर ने उसके जवाब में ये शैर कहा :-
तराज को उठा कर देख नागा!
वहीं झुकता हैं जो पल्‍ला गिरा है

तीसरा बाब
अम्बियाइक्राम ( अलेहिस्सलाम )

तिल्‍्कर्रसूलु फक्ज्ल्ता बअज़ाहुम अला बअजिन
मिनुस्म मन कल्लायल्लाहो व रफाआ बअजाहुम वराजातिन

हिकायत नम्बर ७७ हजुरत आदम अलेहिस्सलाम
और शैतान दा

खुदावन्द करीम ने फरिश्तों में जब एलान फ्रमाया के मैं जीमन में

पना एक खलीफा बनाने वाला हूँ। तो शैतान लईन ने उस बात का बहुत

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सच्ची हिकायात 70 हिस्सा अव्वल
बुरा मनाया और अपने जी ही जी में हसद की आग में जलने लगा।

चुनाँचे जब खुदा ने हजरत आदम अलेहिस्सलाम को पैदा फरमा कर
फरिश्तों को हुक्म दिया के मेरे खलीफा के आगे सज्दे में झुक जाओ। तो सब
सज्दे में झुक गए। मगर शैतान लईन अकड़ रहा। और ना झुका। खुदावन्द
करीम को उसका ये तजुर्बा पसंद ना आया। और उससे दरयाफ्त फरमाया।
के ऐ इबलीस! मैंने जब अपने ये क॒द्गत से बनाए हुए रालीफा के आगे सज्दा
करने का हुक्म दिया। तो तुम ने क्‍यों ना सज्दा किया शंतान ने जवाब दिया।

मैं आदम से अच्छा हूँ। इसलिए के मैं आग से बना हुआ हूँ और वो पिटरी
से बना है। फिर में एक बशर को सज्दा क्‍यों करता?

खुदा तआला ने उसका ये रऊनत भरा जवाब सुना। तो फरमाया:

मर्दूद निकल जा मेरी बारगाहे रहमत से। जा तू कृुयामत तक के लिए
मर्दूद व मलऊन है। ( क्रआने करीम सूरह बक्र )

सबक :- खदा के रसूल और उसके मक्बूलों की इज्जत व तअजीम
करने से खदा खुश होता है। और उनको अपनी मिसल बशर समझ कर उनकी
तअजीम से इंकार कर देना फैल शैतान है। और एक पैगृम्बरे ख़ुदा को सबसे
पहले तहकीरन बशर कहने वाला शैतान है। हु

हिकायत नम्बर ७७ शैतान की थूक

खदा ने जब हजरत आदम अलेहिस्सलाम का पुतला मुबारक तैयार
फरमाया तो फरिश्ते हजरत आदम अलेहिस्सलाम के उस पुतले मुबारक की
जियारत करते थे। मगर शैतान लईन हसद की आग में जल भुन गया। और
एक मर्तबा उस मर्दूद ने बुग्जु व कीने में आकर हजरत आदम अलेहिस्सलाम
के पुतले मुबारक पर धूक दिया ये थूक हजरत आदम अलेहिस्सलाम
की नाफ मुबारक के मुकाम पर पड़ी, खदा तआला ने हजूरत जिब्राईल
अलेहिस्सलाम को हुक्म दिया। के उस जगह से इतनी मिली निकाल कर उस
मिट्टी का कुत्ता बना दो। ह

चुनाँचे उस शैतानी थूक से मिली हुई मिट्टी का कुत्ता बना दिया गया। ये
कुत्ता आदमी से मानूस इसलिए है। के मिड्री हजरत आदम अलेहिस्सलाम की
है। और पलीद इसलिए है। के थूक शैतान की है। और रात को जागता इसलिए
है के हाथ इसे जिब्राईल के लगे हैं। ( रूह-उल-बयान सफा 68 जिल्द )

सबक्‌ः:- शैतान के थूकने से हजरत आदम अलेहिस्सलाम का कुछ
नहीं बिगड़ा। बल्के मुकामे नाफ शिकम के लिए वजह जीनत बन गया। इसी

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ही हिंकायाते /
## (लाह वालों की बारगाह में गुस्‍ताख़ी करने से उन अल्लाह
(रह हीं बिगड़ता। बलल्‍्कें उनकी शान और भी चमकती है। और ये भरी

आओ । के अल्लाह वालों को हसद व नुसरत की निगाह से देखना

र्क्की
मा काम है।

नम्बर 60) हजरत आदम अलेहिस्सलाम

“7. और जंगली हिरन

हजरत आदम अलेहिस्सलाम जब जन्नत से जमीन पर

र तशरीफ लाए
तो जमीन के जानवर आपको जियारत को हाजिर होने लगे। हजरत आओ

अलेहिस्सलाम हर जानवर के लिए उसके लायक दुआ फरमाते। उसी तरह
जंगल के कुछ हिरन भी सलाम करने और जियारत की नीयत से हाजिर
हुए। आपने अपना हाथ मुबारक उनकी पुश्तों पर फेरा। और उनके लिए
दुआ फरमाई। तो उनमें नाफाऐ मुश्क पैदा हो गई। वो हिरन जब ये खूश्बू
का तोहफा लेकर अपनी कौम में बापस आए। तो हिरनों के दूसरे गिरोह ने
पूछा! के ये खूश्बू तुम कहाँ से ले आए? वो बोले अल्लाह का पैगम्बर आदम
अलेहिस्सलाम जन्नत से जूमीन पर तशरीफ लाया है। हम उनकी जियारत के
लिए हाजिर हुए थे। तो उन्होंने रहमत भरा अपना हाथ हमारी पुछ्तों पर फेरा।
तो ये पक हो गईं। हिरनों का वो दूसरा गिरोह बोला। तो फिर हम भी
जते हैं। चुनाँचे वो भी गए हजरत आदम अलेहिस्सलाम ने उनकी पुएतों पर
है २0 उनमें वो खूश्बू पैदा ना हुई। और वो जैसे गए थे। वैसे
38९६ आ गए। वापस आकर वो मुतअज्जिब होकर बोले। के ये
298 तुम गए तो खूश्बू मिल गई। और हम गए तो कुछ ना मिला।
जो हा जवाब दिया। इसकी वजह ये है के हम गए थे। सिर्फ जियारत
कल ! तुम्हारी नीयत दुरस्त ना थी। ( नुजृहत-उल-मजालिस सफा 4

कुछ मिलता झा 0 अल्लाह वालों के पास नेक नीयती से हाजिर होने में बहुत
अपनी नीयत | ओर अगर किसी बदबख़्त को कुछ ना मिले। तो उसकी
केसर नहीं प्‌ का कसूर होता है। अल्लाह वालों की दैन व अता का कोई
35 नहीं होता।

हज मर पर उकायत नम्बर 60 नूह अलेहिस्सलाम की कश्ती
* नह अलेहिस्सलाम की कौम बडी बदबख़्त और नाआकृबत

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सच्ची हिकायात 72 हिस्सा
अन्देश थी। हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने साढ॑ नो सौ साल के अर्से में के
तबलीगे हक्‌ फ्रमाई। मगर वो ना माने। आखिर नूह अलेहिस्सलाम ने उनकी
हलाकत की दुआ माँगी। और खुदा से अर्ज की। के मौला! इन काफिरों
बेखू व बिन से उखाड़ दे। चुनाँंचे आपकी दुआ कबूल हो गईं। और
ने हुक्म दिया के, ऐ नूह! मैं पानी का एक तूफाने अजीम लाऊँगा। और उन
सब काफिरों को हलाक कर दूंगा। तू अपने और चन्द मानने वालों के लिए
एक कश्ती बना ले। ;

चुनाँचे हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने एक जंगल में कश्ती बनाना
फ्रमाई काफिर आपको देखते और कहते। ऐ नूह! क्या करते हो आए
फरमाते ऐसा मकान बनाता हूँ। जो पानी चले। काफिर ये सुन कर हंसते और
तमसखर करते थे हजरत नूह अलेहिस्सलाम फ्रमाते। के आज तुम हंसते हो
और एक दिन हम तुम पर हसेंगे। हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने ये कश्ती दे
साल में तैयार की। उसकी लम्बाई तीन सौ गज, चौड़ाई पचास गज।] और
ऊँचाई तीस गडझ। थी। इस कशती में तीन दर्जे बनाए गए थे। नीचे के दर्जे में
व-हवश और दरिन्दे, दरमियानी दर्जे में चौपाए वगरा। और ऊपर के दर्जे
में खुद हजरत नूह अलेहिस्सलाम और आपके साथी और खाने पीने का
सामान, परिंदे भी ऊपर के दर्जे में थे, फिर जब बहुक्म इलाही तूफाने अजीग
आया। तो उस कश्ती पर सवार होने वालों के सिवा रूऐ जमीन पर जो कोई
था। पानी में गृर्क हो गया। हत्ता के नूह अलेहिस्सलाम का बेटा कनआन भी
जो काफिर था। उसी तूफान में गृर्क हो गया। ( करआने करीम सूरते हू!
खुजायन-उल-इर्फान सफा 33) पर

सबक:- खदा की नाफरमानी से इस दुनिया में भी तबाही व हलाका।
कासामना करना पड़ता है। और अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान, और
उनकी इताअत से ही दोनों जहान में निजात व फलाह मिल सकती है।

हिकायत नम्बर ७0 तूफाने नूह और एक बूढ़िया
हजरत नूह अलेहिस्सलाम ने बहुक्मे इलाही जब कश्ती बनाना शुर्र
की तो एक मोमिना बूढ़िया ने हजुरत नूह से पूछा। के आप ये कश्ती
बना रहे हैं। आपने फ्रमाया। बड़ी बी! एक बहुत बड़ा पानी का तूफान
वाला है जिसमें सब काफिर हलाक हो जाऐंगे। और मोमिन इस कश्ती के
जरिये बच जाऐंगे। बूढ़िया ने अर्ज किया। हुज॒र! जब तूफान आने वाला हों
तो मुझे खबर कर दीजिएगा। ताके मैं भी कश्ती पर सवार हो जाऊँ। बृढ़ियी

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हिकावात श्जे ' हिस्सा
सेल झोपड़ी ढ्ी शहर से बाहर कुछ फासले पर थी। फिर जब बजा न का बतते
आया। तो हजरत नूह अलेहिस्सलाम दूसरे लोगों को तो कश्ती पर चढ़ाने
म मशगल हो गए। मगर उस बूढ़िया का खयाल ना रहा हत्ता के खदा का
क्र अजाब पानी के तूफान की शकल में आया। और रूऐ जमीन के
सब कार्फिर हलाक हो गए। और जब ये अजाब थम गया। और पानी उतर
गया। और कश्ती वाले कश्ती से उतरे तो वो बूढ़िया हजरत नूह अलेहिस्सलाम
के पास हाजिर हुई। और कहने लगी।
हजरत! वो पानी का तूफान कब आएगा? हर रोजू इस इन्तिजार में हूँ
के आप कब कश्ती में सवार होने के लिए फ्रमाते हैं। हजरत ने फ्रमाया
बड़ी बी! तूफान तो आ भी चुका। और काफिरि सब हलाक भी हो चुके। और
कश्ती के जरिये ख॒दा ने अपने मोमिन बन्दों को बचा लिया। मगर तअज्जुब
है के तुम जिन्दा कैसे बच गईं अर्ज किया। अच्छा ये बात है। तो फिर उसी
ख़दा ने जिसने आपको कश्ती के जरिये बचा लिया। मुझे मेरी टूटी फूटी
झॉपड़ी ही के जरिये बचा लिया। ( रूह-उल-बयान सफा & जिल्द 2)
सबक्‌ः- जो खुदा का हो जाए। खुदा हर हाल में उसकी मदद
फरमाता है और बगैर किसी सबब जाहिरी के भी उसके काम हो जाते हैं।

हिकायत नम्बर ७0 हजरत उजेर अलेहिस्सलाम और
खुदा की क॒द्गत के कारिएमे

बनी इस्राईल जब खदा की नाफरमानी में हद से ज़्यादा बढ़ गए।

तो खदा ने उन पर एक जालिम बादशाह बख्त नम्न को मुसलल्‍्लंत कर
दिया। जिसने बनी इस्राईल को कत्ल किया। गिरफ्तार किया। और तबाह
किया। और बैत-उल-मुक्‌दस को बर्बाद व वीरान कर डाला। हजरत ड्जैर
अलेहिस्सलाम एक दिन शहर में तशरीफ्‌ लाए तो आपने शहर को बीरानी
पे बर्बादी को देखा। तमाम शहर में फिरे। किसी शख्स को वहां ना पायां।
शहर की तमाम इमारतों को मुनहदिम देखा! ये मंजूर देख कर आपने बराह
पआज्जुब फ्रमाया। अन्नीया बूहिवी यी हाजीहिल्लाहू बअदा मौतिहा वअनब
“अल्लाह इस शहर की मौत | बाद उसे फिर केसे जिन्दा फ्रमाएगा? .
आप एक दराज गोश पर सवार थे। और आपके पास एक बर्तन खजूर
और एक पियाला अंगूर के रस का था। आपने अपने दराजंगोश को एक
ज्त से ब्राधा और जम वूख्न के नीचे आप सो गए। जब सो गए। तो खुदा

9८०९0 09५ (.क्राइट्याल

संच्छी. हिंकायात स्व हिस्सा अव्वल
ने. उसी हालत में आपकी रूह कब्ज कर ली। और गधा भी मर गया। इस
चाक्केये के सत्तर साल बाद अल्लाह तआला ने शाहाने फारस में से एक
बादशाह को मुसलल्‍लत किया। और वो अपनी फौजें लेकर बैत-उल-मुक्‌दस
पहुँचा। और उसको पहले से भी बेहतर तरीके पर आबाद किया और बनी
इस्राईल में से जो लोग बाकी रहे थे। खुदा तआला उन्हें फिर यहाँ लाया। और
वो बैत-उल-मुकूदस और उसके नवाह में आबाद हुए। और उनकी तअदाद
बढ़ती रही। उस जमाना में अल्लाह तआला ने हजूरत उजैर अलेहिस्सलाम
को दुनिया की आँखों से पौशीदा रखा। और कोई आपको देख ना सका जब
आपकी वफात को सौ साल गुजर गए। तो अल्लाह ने दोबारह आपको जिन्दा
किया। पहले आँखों में जान आईं। अभी तमाम जिस्म मुर्दा था। वो आपके
देखते देखते जिन्दा किया गया। जिस वक्त आप सोए थे। वो सुबह का वक्त
था। और सौ साल के बाद जब आप दोबारह जिन्दा किए गए तो ये शाम का
वक्‍त था। खदा ने पूछा। ऐ उजैर! तुम यहाँ कितने ठहरे? आपने अंदाजे से
अर्ज किया। के एक दिन या कुछ कम। आपका खयाल ये हुआ के ये उसी
दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे। खुदा ने फ्रमाया। बल्के तुम तो
सौ बरस ठहरे हो। अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को
देखिये के वैसा ही है इसमें बू तक नहीं आई और अपने गथे को भी जरा
देखिए। आपने देखा। तो वो मरा हुआ और गल चुका था। आजू उसके बिखरे
हुए और हड्डियाँ सफेद चमक रही थीं। आपकी निगाह के सामने अल्लाह
ने उस गधे को भी जिन्दा फ्रमाया। पहले उसके अज्जा जमा हुए और अपने
अपने मौके पर आए। हड्डियों पर गोश्त चढ़ा। गोश्त पर खाल आई। बाल
निकले फिर उसमें रूह आई। और आपके देखते देखते ही वो उठकर खड़ा
हुआ। और आवाज करने लगा। आपने अल्लाह की कूद्रत का मुशाहेदा किया।
और फरमाया मैं जानता हूँ के अल्लाह तआला हर शै पर कादिर है। फिर
आप अपनी सदारी पर सवार होकर अपने मोहल्ले में तशरीफ लाए।

कोई पहचानता ना था। अंदाजे से आप अपने मकान पर पहुँचे उम्र आपकी
वही चालीस साल की थी। एक जईफ बूढ़िया मिली। जिसके पाऊँ रह गए थे
और नाबीना थी। बो आपके घर की बांदी थी और उसने आपको देखा थीं
आपने उससे पूछा। के ये उजैर का मकान है। उसने कहा] हाँ। मगर उजैर
गुम हुए सौ बरस गुजर गए। ये कह कर खूब रोई। आपने फ्रमाया।
तआला ने मुझे सौ बरस मुर्दा रखा फिर जिन्दा किया। बूढ़िया बोली। ई*
अलेहिस्सलाम मुसतजाब-उल-दावात थे। जो दुआ करते कूबूल हो जा

9९९06 99 (थ्वा]58८शाशश'

सच्ची हिंकायात हैं 75 कीजिए हिस्सा अव्वल
। आप अगर उजैर हैं। तो दुआ कीजिए। के मैं मं
करती हक आपको देखे दुआ कोजिए के मैं बीना हो जाऊँ ताके
आपने दुआ की तो वो बीना हो गई। फिर आपने उसका हाथ पकड़
क्र फरमाया खुदा के हुक्म से देख ये फ्रमाते ही उसके मरे हुए पाऊँ भी
दुरूस्त हो गए उसने आपको देख कर पहचाना और कहा। मैं गवाही देती
हूँ। के आप बेशक उजैर ही हैं। फिर वो आपको मोहल्ले में ले गई। वहाँ एक
प्रजलिस में आपके फ्रजन्द थे। जिनकी उम्र एक सौ अ्भारह साल की हो
थी। और आपके पोते भी थे। जो बूढे हो चुके थे। बूढ़िया ने मजलिस
में पुकारा। ये हजुरत डजैर तशरीफ लाए हैं, अहले मजलिस ने उस बात को
। उसने कहा मुझे देखो। मैं आपकी दुआ से बिलकुल तनदुरूस्त और
बीना हो गई हूँ। लोग उठे और आपके पास आए। आपके फ्रजन्द ने कहा।
मेरे वालिद साहब के शानों के दरमियान सियाह बालों का एक हलाल था।
जिस्म मुबारक खोल कर देखा गया। तो वो मौजूद था। ( करआन करीम प०
3 रूकू 3 और खजायन-उल-इफान सफा & ) हु
सबके्‌:- खुदा को नाफ्रमानी का एक नतीजा ये भी है। जालिम
हाकिम मुसललत कर दिए जाते हैं। और मुल्क बर्बाद व वीरान हो जाते हैं।
और अल्लाह तआला बड़ी क॒द्गतों का मालिक है। वो जो चाहे कर सकता
है और एक दिन उसने सब का दोबारह जिन्दा करके अपने हुज॒र बुलाना है
और हिसाब लेना है और ये भी मालूम हुआ के नबी का जिस्म मौत वारिद
होने के बाद भी सही सालिम रहता है। हाँ जो गधे हैं वही मर कर मिट्टी में
मिल जाते और मिट्टी हो जाते हैं।

हिकायत नम्बर ७) हजरतं इब्राहीम अलेहिस्सलाम
और चार परिनदे

हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम ने एक रोज सपुद्रं के किनारे एक आदमी

भरा हुआ देखा। आपने देखा के समुद्र की मछलियाँ उसकी लाश को खा रही
। और धोड़ी देर के बाद फिर परिन्‍्दे आकर उसकी लाश को खाने लगे
फिर आपने देखा के जंगल के कुछ दरिन्दे आए। और वो भी उसकी लाश को
खाने लगे । आपने ये मंजर देखा। तो आपको शौक हुआ के आप मुलाहेजा
माएँ। के मुर्दे किस तरह जिन्दा किए जाएँगे चुनाँचे आपने खुदा से अर्ज
। इलाही! प्रह्मे यक्कीन है व्मे त मर्ठों को जिन्दा फेरंमाएगा। और उनंके

 

सच्ची हिकायात /6 दरिन्दों के पेटों हस्सा अचल
अज्जाऐ दरयाई जानवरों। परिन्दों और दरिन्द के से जमा फ्रमाणा
लेकिन मैं ये अजीब मंजर देखने की आरजू रखता है। सुदा ने फरमाया
ऐ खूलील! तुम चार परिन्दे लेकर उन्हें अपने साथ हिला लो। ताके
तरह उनकी शनाख़्त हो जाए। फिर उन्हें जिबह करके उनके अज्जाऐ
मिला जुला कर उनका एक एक हिस्सा। एक एक पहाड़ पर रख दो।
फिर उनको बुलाओ। और देखो वो किस तरह जिन्दा होकर. तुम्हारे पाप
दौड़ते हुए आते हैं। |
चुनाँचे हजुरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम ने मोर, कबूतर , मुर्ग और कव्चा।
ये चार परिन्दे लिए और उन्हें जिबह किया। और उनके पर उखाड़े , और उन
सब का कीमा करके और आपस में मिला जुला कर उस मजमूओ के कई
हिस्से किए। और एक एक हिस्सा एक एक पहाड़ पर रख दिया। और सा
सब के अपने पास महफूज रखे। और फिर आपने उनसे फ्रमाया। “चल्ले
आओ।” आपके फरमाते ही वो अज्जा उड़े और हर हर जानवर के अज्जा
अलेहदा अलेहदा होकर अपनी तरतीब से जमा हुए। और परिनदों की शक्हें
बनकर अपने पाँऊ से दौड़ते हुए हाजिर हुए। और अपने अपने सरों से मिलक
बईनही पहले की तरह मुकम्मल होकर उड़ गए। ( कुरआन करीम प० 3 रूक्‌
3 खजायन-उल-इफान सफा 6) '
सबकः:- खदा तआला बड़ी कृद्रत व ताकृत का मालिक है। कोई
डूब कर मर जाए और उसे मछलियाँ खा जाएँ या जल कर मरे और राख हो
जाए। या किसी को दरिन्दे परिन्दे और दरयाई जानवर थोड़ा थोड़ा खा जाएं।
और उसके अज्जा मुनतशिर हो जाएँ खदाऐ बरतर व तवाना फिर भी उसे
जमा फरमा कर जरूर जिन्दा फ्रमाएगा। और बारगाह ऐज्दी की हाजरी से
उसे मुफ्रि नहीं। और ये भी मालूम हुआ के मुर्दे सुनते हैं। वरना खुदा अपने
खलील से ये ना फ्रमाता के उन मुर्दा और कीमा शुदा परिन्दों को बुला।
हजरत इब्नाहीम अलेहिस्सलाम ने बहुक्म इलाही उन मुर्दा परिन्‍्दों को बुलाया
और वो मुर्दा परिन्दे आपकी आवाज को सुन कर दौड़ पड़े। ये परिन्दों की
समाअत है। और जो अल्लाह वाले हैं। उनकी समाअत का आलम क्या हुआ
और ये भी मालूम हुआ के। उन परिन्‍्दों को जिन्दा तो खदा ने किया। लेकिन ये
जिन्दगी उन्हें मिली इब्राहीम अलेहिस्सलाम के बुलाने और उनके लब हिलने
से, गोया किसी अल्लाह वाले के लब हिल जाएँ। तो खुदा काम कर
है। इसी लिए मुसलमान अल्लाह वालों के पास जाते हैं ताके उनकी मुबारक
और मुसतजाब दुआओं से अल्लाह हमारा काम कर दे।

 

. हिकायत तीशाऐ खलील अलेहिस्सलाम जब पैदा हुए

हजार की क्ा बड़ा जोर था। हजरत इब्नाहीम 2203958& बज दिन
डुन बुत परस्तों से फरमाने लगे। के ये तुम्हारी क्या हरकत है के उन मूर्तियों
के आगे झुके रहते हो। ये तो परसतिश के लायक नहीं। परसतिश के लायक

सिर्फ एक अल्लाह है। ह

बो लोग बोले। हमारे तो बाप दादा भी इन्हीं मूर्तियों की पूजा करते चले

आए हैं 5 2४ तुम एक ऐसे आदमी पैदा हो गए हो। जो उनकी पूजा से
लगे हा। ।

कम फरमाया | तुम और तुम्हारे बाप दादा सब गुमराह हैँ । हक बात
यही है। जो मैं कहता हूँ। के तुम्हारा और जूमीन व आसमान सबका रब वो
है जिसने उन सब को पैदा फ्रमाया। और सुन लो! मैं खुदा की कसम खा
कर कहता हूँ। के तुम्हारे इन बुत्तों को मैं समझ लूंगा।

चुनाँचे एक दिन जब के बुत परस्त अपने सालाना मेले पर बाहर जंगल
में गए हुए थे। हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम उनके बुतखाने में तशरीफ्‌ ले
गए। और अपने तीशे से सारे बुत तोड़ फोड़ डाले और जो बड़ा बुत था। उसे
ना तोड़ा और अपना तीशा उसके कंधे पर रख दिया। उस खयाल से के बुत
परस्त जब यहाँ आएँ। तो अपने बुतों का ये हाल देख कर शायद उस बड़े
बुत से पूछें। के उन छोटे बुतों को ये कौन तोड़ गया है? और ये तीशा तेरे
कंधे पर क्यों रखा है? और उन्हें उनका अज्जु जाहिर हो और होश में आएं
के ऐसे आजिज खुदा नहीं हो सकते।

चुनाँचे जब वो लोग मे मेले से वापस आए और अपने बुतखाने में पहुँचे
तो अपने मअबूदों का ये हाल देखकर के कोई इधर दूटा हुआ पड़ा है, किसी
का हाथ नहीं तो किसी की नाक सलामत नहीं। किसी की गर्दन नहीं तो किसी
की टाँगें ही गायब हैं। बड़े हैरान हुए। और बोले। के किस जालिम ने हमारे
उन मअबूदों का ये हप्न किया है?

फिर ये खुबर नमरूद और उसके अमरआ को पहुँची। और सरकारी तौर
पर उसकी तहकीक्‌ होने लगी। तो लोगों ने बताया। के इब्नाहीम उन हक
खिलाफ बहुत कुछ कहते रहते हैं। ये उन्हीं का काम मालूम होता है। चुनाँचे
हैजूरत इब्राहीम को बुलाया गया। और आपसे पूछा गया। के ऐ इब्राहीम! क्या
तुम ने हमारे ख़दाओं के साथ ये काम किया? आपने फ्रमाया। वो बड़ा बुत,

 

जिसके कंथे पर तीशा है। उस सूरत में तो ये कयास किया जा सकता है"
ये उसी का काम है। तो फिर मुझ से क्या पूछते हो। उसी से पूछलोना '
ये काम किस ने किया। वो बोले मगर वो तो बोल नहीं सकते। उस मौके के
हजूरत इब्राहीम जलाल में आ गए और फ्रमाया जब तुम खुद मानते हो
वो बोल नहीं सकते। तो फिर तुफ्‌ है तुम बे अकलों पर। और उन बुत्तों के
जिन को तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो। ( क्रआन प० 7 रूकू 5) . |

सबक्‌:- खुदा को छोड़ कर बुतों को पूजना शिर्क है। और
में जहाँ बिन दूतनिल्लाही यानी “अल्लाह के सिवा” का लफ्ज आया है
वहाँ यही बुत मुराद हैं ना के अम्बिया व औलिया। इसलिए के हज
अलेहिस्सलाम उन पर “तुफ्‌ ” फ्रमा रहे हैं तो अगर उनसे मुराद अम्बियाद
औलिया हों तो हजरत इब्नाहीम अलेहिस्सलाम ऐसा क्‍यों फरमाते।

हिकायत नम्बर (७) खुलील व नमरूद का मुनाजर

. हजरत इब्नाहीम अलेहिस्सलाम ने जब नमरूद को खदा परस्ती की
दअवत दी तो नमरूद और हजूरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम में हस्बे जेल
मुनाजरह हुआ।

नमरूदः तुम्हारा रब कौन है। जिसकी पर परसतिश की तुम मुझे
दअवत देते हो? हजरत खलील अलेहिस्सलाम: मेरा रब वो है। जो जिन्दा भ॑
कर देता है। और मार भी डालता है।

नमरूद: ये बात तो मेरे अन्दर भी मौजूद है। लो अभी देखो मैं तुझ्
जिन्दा भी करके दिखाता हूँ और मार कर भी। ये कहकर नमरूद ने दो शस््
को बुलाया। उनमें से एक शख्स को क॒त्ल कर दिया। और एक को छोड़ दिय
और कहने लगा। देख लो। एक को मैंने मार डाला। और एक को गिरफ़्ता
करके छोड़ दिया। गोया उसे जिन्दा कर दिया। नमरूद की ये अहमकान
बात देख कर हजरत खुलील अलेहिस्सलाम ने एक दूसरी मुनाजराना गुफ्त।
फ्रमाई और फरमाया।

खुलील अलेहिस्सलाम: मेरा रब सूरज को मशरिक्‌ की तरफ से लाता है
तुझ में अगर ताकृत है। तो तू मगरिब की तरफ से लाकर दिखा। ये बात सै
कर नमरूद के होश उड़ गए और ला जवाब हो गया। ( कुरआन प० 3 रूकू ?

सबक्‌:- झूटे दअबे का अंजाम जिल्लंत व रूसवाई, और कार्पि'
इन्तिहाई अहमक होता है। ' द

 

हिकायत आतिश कदाऐं नमरूद

नमरूद मलऊन ने हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम से जब मुनाजरह में
झकस्त खाईं। तो और तो कुछ ना कर सका। हजरत का जानी दुश्मन बन
गया। और आपको कद कर लिया। ओर फिर एक बहुत बड़ी चार दीवारी
की, और उसमें महीने भर तक बकोशिश किस्म किस्म की लकड़ियाँ
जमा कीं। और एक अजीम आग जलाईं। जिसकी तपिश से हवा में उड़ने
बाले परिन्दे जल जाते थे। और एक मुनजनीक्‌ ( गोफून ) तैयार करके
खड़ी की और हजरत इब्राहीम को बाँध कर उसमें रखकर आग में फैंका।
हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम की जुबान पर उस वक्त ये कलमा जारी था।
ब नीओमल वकील इधर नमरूद ने आपको आग में फैंका
और इधर अल्लाह ने आग को हक्‍म फ्रमाया। के ऐ आग! खूबरदार! हमारे
खलील को मत जलाना। तू हमारे इब्राहीम पर ठंडी हो जा। और सलामती
का घर बन जा। चुनाँचे वो आग हजुरत इब्नाहीम के लिए बाग व बहार बन
गई। और नमरूद की सारी कोशिश बेकार चली गई। ( कुरआन करीम प*
7 रूकू 5 और खजायन-उल-इफ्न सफा 43 ) रा
सबक:ः- अल्लाह वालों को दुश्मन हमेशा तंग करते रहे। लेकिन
अल्लाह वालों का कुछ ना बिगाड़ सके और खुद ही जलील होते रहे।

 

 

हिकायत खुलील ब जिब्राईल

हजूरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम को नमरूद ने जब आग में फैंकना चाहा
तो जिब्राईल हाजिर हुए। और अर्ज किया। हुजर! अल्लाह से कहिये वो
आपको इस आतिशकदा से बचा ले। आपने फरमाया। अपने जिस्म क्रे लिए
इतनी बुलंद व बाला पाक हस्ती से ये मामूली सा सवाल करूं? जिन्नाईल ने
अर्ज किया। तो अपने दिल के बंचाने के लिए उससे कहिये फ्रमाया ये दिल
उसी के लिए है। वो अपनी चीज से जो चाहे सलूक करे। जिब्राईल ने अर्ज
किया। हुजर! इतनी बड़ी तेज आग से आप क्‍यों नहीं डरते?
फरमाया। ऐ जिब्राईल! ये आग किस ने.जलाई?
जिब्राईल ने जवाब दिया। नमरूद ने!
फ्रमाया। और नमरूद के दिल में ये बात किस ने डाली? _
जिब्नाईल ने जवाब दिया। रब्बे जलील ने!
खेलील ने फरमाया। तो फिर इधर हकक्‍्यमे जलील है। तो इधर रजाऐ

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